विष्णुपद मंदिर राज्य बिहार के गया शहर में स्थित हिंदू मंदिर है। शिखर रूप में निर्मित यह मंदिर श्री हरि के चरण चिन्ह होने के कारण विष्णु पद के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर में पूजा अर्चना करने वाले गयावाल पंडा के नाम से जाने जाते हैं। भगवान विष्णु का ये देवालय निरंजना अथवा फल्गु नदी के किनारे अवस्थित है।
पौराणिक कथा:
यह मंदिर कितना पुराना है ये किसी को नहीं मालूम परंतु ये कथा सतयुग तक जाती है!
गयासुर नाम के राक्षस ने तपोबल और कर्म के बल से इतनी शक्ति प्राप्त कर ली थी कि उसके दर्शन मात्र से व्यक्ति तत्क्षण स्वर्ग में प्रवेश प्राप्त कर लेता था। अतः स्वर्ग में प्रवेश वालों की संख्या में वृद्धि होने लगी, स्वर्ग के प्रवेश द्वार पर लगी कतारों को देख कर देवतागण परेशान होकर श्री हरि के पास इसका निदान लेने पहुंचे।
श्री हरि ने गयासुर को सशरीर भूमि में पहुंचा दिया व उसे वहीं रोकने के लिए अपने चरण उसके उपर रख दिए। भगवान विष्णु ने गयासुर नामक राक्षस का वध कर उसे भूमि के नीचे दबा दिया और यहाँ उनके पदचिन्ह बन गये। और इसी कारण आज भी इस स्थान पर विष्णु के पदचिन्हों की पूजा की जाती है।
गयासुर इस दयनीय स्थिति में था कि वह भोजन भी ग्रहण करने में असमर्थ हो गया। तत्पश्चात उसके द्वारा भोजन की याचना करने पर श्री हरि ने कहा कि ‘प्रतिदिन कोई न कोई तुम्हें भोजन अवश्य करायेगा।’
आज भी किसी कारणवश विष्णु पद में यदि श्राद्धादि कर्म नहीं होता है तो पंडे स्वयं संकल्प लेते हुए श्री हरि के वचनों का अनुपालन करते हुए सांकेतिक रूप में पिंड दान करते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार श्री राम माँ जानकी और लक्ष्मण जी के साथ यहाँ आये थे और जानकी जी ने अपने ससुर महाराज दशरथ जी का श्राद्ध इसी स्थान पर किया था।
मंदिर का इतिहास और स्थापत्य:
वर्तमान भवन इंदौर के रानी अहिल्या बाई होल्कर ने बनवाया था जिसका निर्माण सन 1787 में संपन्न हुआ!
विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर हैं। राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया और उसी का उपयोग करते हुए गयासुर पर अपने चरण रख कर भगवान विष्णु ने उसका दमन किया था।
विष्णुपद मंदिर सोने को कसने वाला पत्थर कसौटी से बना है, जिसे जिले के अतरी प्रखंड के पत्थरकट्टी से लाया गया था। इस मंदिर की ऊंचाई करीब सौ फीट है। सभा मंडप में 44 पीलर हैं। 54 वेदियों में से 19 वेदी विष्णपुद में ही हैं, जहां पर पितरों के मुक्ति के लिए पिंडदान होता है।
विष्णुपद मंदिर के शीर्ष पर 50 किलो सोने का कलश और 50 किलो सोने की ध्वजा लगी है। गर्भगृह में 50 किलो चांदी का छत्र और 50 किलो चांदी का अष्टपहल है, जिसके अंदर भगवान विष्णु की चरण पादुका विराजमान है। इसके अलावे गर्भगृह का पूर्वी द्वार चांदी से बना है। वहीं भगवान विष्णु के चरण की लंबाई करीब 40 सेंटीमीटर है।
विष्णुपद मंदिर का महत्व:
पितृपक्ष के समय में गया कि भूमि लाखों लोगों का स्वागत करती है। देश-विदेश से लोग अपने पितरों का श्राद्ध तर्पण करने यहां आते हैं।
विष्णु पद के अतिरिक्त रामशिला, प्रेतशिला, ब्रह्मयोनि (जहां परमपिता ब्रह्मा ने तपस्या की थी), आदि दर्शनीय और गया यात्रा में उल्लिखित प्रमुख स्थान है। मंदिर के सामने नदी के पार है “सीता कुण्ड!” बिहार की मोक्षदायिनी भूमि गया नारायण के शरण में आपका स्वागत करती है।
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