माँ पटनेश्वरी देवी का समावेश 51 शक्तिपीठों में किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति के प्रसिद्ध यज्ञ के पश्चात पिता द्वारा किये गए शिव के अपमान से क्रोधित हुई माँ सती ने आत्मदाह किया था और सती के शरीर को धारण कर तांडव कर रहे शिव के क्रोध शमन के लिए श्री विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माँ के शरीर को भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों में बिखेर दिया था। पटन देवी का मंदिर उस स्थान पर है जहाँ सती मां का दाहिना जांघ गिरा था।

इस स्थान पर ‘दूगो मईया’ का वास है, छोटी पटन देवी और बड़ी पटन देवी। उत्तराभिमुख बड़ी पटन देवी मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। हालांकि कुछ इतिहासकारों के मतानुसार अठारहवीं उन्नीसवीं शताब्दी तक छोटी पटन देवी का स्थान अधिक महत्वपूर्ण माना जाता था। यह निसंदेह बात है कि भक्तों के लिए दोनों स्थान प्राचीन काल से आस्था के केन्द्र रहे हैं।

बडी पटन देवी के गर्भगृह में महाकाली, महालक्ष्मी तथा महा सरस्वती के उपरांत भैरव जी के विग्रह स्थापित किये गए हैं। लोकोक्तियों के अनुसार यह देवियाँ पाटलीपुत्र के स्थापक, जिन्हें पुत्रक कहा गया है उनकी रक्षक देवियाँ थीं।

सन १९१२ में पटना नगर का नामकरण इन्हीं पटन देवी के नाम पर किया गया है। मान्यताओं के अनुसार पटनेश्वरी देवी आज भी नगर की रक्षिका देवी हैं और नगर पर आने वाली विपत्तियों से नगर जनों की रक्षा करतीं हैं। मंगलवार को बड़ी पटन देवी मंदिर में दर्शन का महत्व बताया गया है।

छोटी पटन देवी का मंदिर पटना के चौक इलाके में स्थित है। इतिहासकार बुचानन के मतानुसार इस मंदिर का निर्माण सवाई मानसिंह ने कराया था। इस स्थान पर पटन देवी के अलावा गणेश जी, श्री विष्णु तथा सूर्य नारायण के विग्रह स्थापित किये गए हैं। इस मंदिर के कुछ शिल्प नौंवी शताब्दी से अधिक पुराने होने का अनुमान है।

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