आज नागपंचमी और सोमवार का दुर्लभ संयोग है और इसी अवसर पर चलिए जानते हैं भगवान शिव और सर्पराज तक्षक के संबंध की कथा।
भगवान विष्णु को शेषशैय्या पर विराजमान आपने देखा होगा किन्तु यह विश्व का एकमेव मंदिर है जिसमें महादेव नागासन पर विराजमान हैं। मंदिर में भगवान शिव के अतिरिक्त पार्वती माता दस फन वाले सांप के आसन पर स्थित हैं उनकी एक तरफ गणेश जी का विग्रह है। भगवान शिव और पार्वती के वाहन नंदी और सिंह भी प्रतिमा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं और देवतागण के एकांत को बनाए रखने के लिए प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के शुभ अवसर पर ही इस देवालय के कपाट खोले जाते हैं।
परंपरा के अनुसार वर्ष के बाकी दिन यह मंदिर भक्तों के लिए सुगम्य नहीं है। भारतवर्ष के नाभि स्थान पर स्थित उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के शीर्ष पर नागचंद्रेश्वर का विग्रह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो साल में मात्र एक बार शिव भक्तों के लिए खुलता है और वह दिन है नाग पंचमी।
भगवान नागचंद्रेश्वर का आशीर्वाद लेने कोने कोने से यात्री आते हैं। इस वर्ष नागपंचमी और सावन महीने का तीसरा सोमवार का सुखद संयोग है। नागपंचमी के अवसर पर नागचंद्रेश्वर मंदिर में अमुमन पांच लाख श्रद्धालु उज्जैन में होते हैं।
नागचंद्रेश्वर महादेव उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर मंदिर के शिखर के द्वितीय तल पर स्थित हैं। इस मंदिर के पट दर्शनार्थियों के लिए वर्ष में मात्र चौबीस घंटे के लिए खोले जाते हैं।
यदि इतिहास की बात करें तो यह मंदिर अतिप्राचीन है। पुरातत्वविदों के मुताबिक उज्जैन के नागचंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित की गई प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार इस मंदिर में नागराज तक्षक स्वयं भगवान शिव के साथ विराजमान हैं। परमार राजा भोज ने सन 1050 के समयकाल में इस मंदिर का निर्माण कराया था। एक मत के अनुसार इस दुर्लभ विग्रह को नेपाल से निर्माण करा कर यहाँ स्थापित किया गया था। इसके पश्चात मराठा काल में 1732 में महाराजा राणोजी सिंधिया ने महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
नागपंचमी पर्व पर वर्ष में एक बार होने वाले नागचंद्रेश्वर शिव के दर्शन हेतु रात में मंदिर के पट खुलते हैं और ठीक चौबीस घंटे बाद आरती के पश्चात मंदिर के द्वार पुनः बंद कर दिए जाते हैं। नागराज के आसन पर विराजे भगवान शिव की एक झांकी प्राप्त करने के लिए दर्शनार्थी यहाँ तक खींचे चले आते हैं।
वर्ष में मात्र एक बार खुलने वाले मंदिर का रहस्य
मान्यता के अनुसार नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से ही सभी आधि व्याधि और कालसर्प दोष का निवारण हो जाता है। ज्योतिर्लिङ्ग के शिखर पर द्वितीय तल पर फन फैलाए तक्षकासन पर भगवान शिव और पार्वती उमा महेश्वर के रूप में विराजित हैं।
नागचंद्रेश्वर की पौराणिक कथा के अनुसार अमरत्व प्राप्त करने के लिए महादेव को प्रसन्न करना आवश्यक था और इसी उद्देश्य से तक्षक नाग ने उज्जैन में घोर तपस्या की थी। तक्षक की तपस्या से महादेव शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा को अमर होने का वरदान दिया। वरदान के बाद से नागराज तक्षक को शिव का सान्निध्य प्राप्त हुआ और शिव ने उन्हें अपने शरीर पर धारण किया।
लेकिन कैलाश के एकांत में रहने वाले शिव को महाकाल के जंगल में शांति कैसे प्राप्त होती? इसीलिए उनके एकांत में कोई खलल ना हो इसलिए मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शनार्थियों के दर्शन के लिए प्रकट होते हैं। वर्ष का बाकी समय उनके एकांत हेतु नागचंद्रेश्वर मंदिर बंद रहता है।
इस मंदिर में दर्शन करने के बाद भक्त किसी भी प्रकार के सर्पदोष से मुक्त होता है और इसी कारण नागपंचमी के दिन चौबीस घंटे के लिए दर्शन देने वाले नागचंद्रेश्वर महादेव के शिवालय बाहर भक्तों की लंबी कतार लगती है।