कुष्ठरोग से पीड़ित, कुरुप हो चुके शाह वंश के नेपाल नरेश महेन्द्र वीर विक्रम शाह देव अब पीड़ा सहन नहीं कर पा रहे थे। राजवैद्य के सभी उपाय व्यर्थ हो चुके थे। असह्य हो चुकी पीड़ा और असाध्य हो चुके रोग से परेशान महेन्द्र वीर विक्रम देव ने महादेव की शरण में जाने का निर्णय लिया और समस्त विश्व के नाथ काशी के महादेव की ओर प्रयाण किया।नेपाल से वाराणसी जाते हुए यात्रा मार्ग में थके हुए महाराज विश्राम के लिए एक निर्जन स्थान पर पडाव के लिए रूके। सूर्यनारायण अपनी सर्वोच्च प्रखरता से पृथ्वी पर अपनी किरणों का प्रहार किये जा रहे थे। नेपाल नरेश रोगग्रस्त शरीर से बहती प्रस्वेद की नदियों से निजात पाने के लिए जलस्रोत ढूंढने लगे।

उन्होंने एक पीपल वृक्ष के नीचे छोटे से गड्ढे में थोड़ा पानी भरा हुआ देखा और मुंह धोने के लिए उसमें हाथ डाल के अंजलि भर ली… किन्तु यह क्या… हाथ में जल लेते ही उनके हाथ का कुष्ठ रोग जाता रहा। जैसे ही उन्होंने जल से मुंह धोया और चेहरे का कुष्ठ रोग भी ठीक हो गया। नेपाल नरेश का असाध्य रोग पूर्ण रूप में ठीक हो चुका था। काशी पहुंचने से पहले ही महादेव ने उनको निरोगी होने का वरदान दे दिया था।

भगवान शिव के संकेतों से उस स्थान पर महादेव का लिङ्ग प्राप्त हुआ लेकिन महादेव के आदेशानुसार उसे नेपाल नहीं ले जाया जा सकता था इसीलिए नेपाल नरेश ने उसी स्थान पर भव्य मंदिर बनवाया।

लोकोक्तियों में प्रचलित रोग निर्मूलन की इस कथा को पांच सौ वर्ष हो चुके हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले महादेव का मंदिर परिसर समय के साथ और भी भव्यता धारण करता जा रहा है। परिसर में पार्वती जी, गणपति जी, हनुमान, श्री राम और भैरव के मंदिर भी विद्यमान हैं। सावन, महाशिवरात्रि और नवरात्र जैसे पर्वों पर महेन्द्रनाथ महादेव मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है।

कमलदाह सरोवर के तट पर स्थित मंदिर से कुछ दूरी पर विश्वकर्मा का मंदिर भी दर्शनीय है। कमलदाह सरोवर मौसमी पंछियों का भी विश्राम स्थल है।

मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु यहां घंटा बांधते है । आपको विश्वास नहीं होगा की पूरे मंदिर प्रांगण में मनोकामना पूर्णित होने पर असंख्य हज़ारों घंटे बंधे हुए हैं और यह महादेव की लीला का ही प्रमाण माना जाता है।

महेंद्र बीर बिक्रम शाह देव का चर्मव्याधि निर्मूल होने की कथा के कारण इस मंदिर में भारत के कोने कोने से चर्म रोगी श्रद्धा से चले आते हैं। इसके अतिरिक्त निःसंतान दंपत्ति और राजनेता भी अपनी मनोकामना पूर्ण करने के उद्देश्य से यहाँ आते हैं।

सीवान जिले से करीब पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित मेंहदार गाँव में यात्रियों को ठहरने के लिए धर्मशाला और अतिथि भवन का निर्माण किया गया है।दुर्भाग्यपूर्ण समाचार के अनुसार इसी वर्ष अठारह जुलाई के दिन सावन के सोमवार के दर्शन को उमडी भीड़ और भगदड़ में दो श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई है।

दुर्भाग्यपूर्ण समाचार के अनुसार इसी वर्ष अठारह जुलाई के दिन सावन के सोमवार के दर्शन को उमडी भीड़ और भगदड़ में दो श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई है। (Link)

लेखक: Samarg Kumar

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