वडोदरा संग्रहालय में प्रवेश करते ही मुख्य खंड में आपका स्वागत एक सुंदर गणेश प्रतिमा करती है। उल्लेखनीय है कि जब इस मूर्ति को सितंबर २०१६ में एक वर्ष के लिए चीन में प्रदर्शन के लिए भेजा गया था तब इसका पुरातत्वीय महत्व देखते हुए राष्ट्रीय संग्रहालय ने इसके लिए ₹ २,००,००,००० का बीमा कराया गया था।

चलिए जानते हैं क्यों है यह प्रतिमा इतनी मूल्यवान?

सन १९६३ में शामळाजी और देवनी-मोरी उत्खनन क्षेत्र में मेशवा नदी के तट पर इस प्रतिमा का प्राकट्य हुआ था जिसके पश्चात इसे वडोदरा संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया। इस प्रतिमा के उत्खनन का श्रेय पुरातत्वविद देवशंकर शास्त्री को जाता है।

८७ सेंटीमीटर उंचाई तथा ४४ सेंटीमीटर चौडाई वाली बायीं सूंड के गणेश जी की यह मूर्ति करीब १६०० वर्ष पुरानी होने का पुरातत्वविदों का अनुमान है। इस प्रतिमा में गणेश जी अपने गण के साथ खड़े हैं और उन्होंने हाथ में नाग धारण किया हुआ है।

इसा की तीसरी शताब्दी में निर्मित इस, गणेश मूर्ति का मुख उनके शरीर के १:६ के अनुपात में है जो प्रतिमा विज्ञान के ग्रंथों में लिखे विधान का श्रेष्ठ उदाहरण है।

इसके उपरांत एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस प्रतिमा में गणेश जी भगवान शिव की भांति त्रिनेत्र हैं।

संग्रहालय में गणेश जी की इस प्रतिमा के उपरांत अन्य चार महत्वपूर्ण प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं।

१. ईसा की आठवीं शताब्दी में रोडा से प्राप्त हुए गणेश जी। रोडा पूर्व में इडर राज्य का भाग हुआ करता था। इस प्रतिमा को संग्रहालय के प्रांगण में रखा गया है।

२. काले पत्थर से निर्मित इस गणेश प्रतिमा जिसका उत्खनन दक्षिण भारत में किया गया था। इस प्रतिमा को भी संग्रहालय के प्रांगण में रखा गया है।

३. ईसा की दसवीं शताब्दी में खजुराहो से प्राप्त प्रणव स्वरूप में गणपति मूर्ति। इस प्रतिमा की विशेषता है कि गणपति का मुख ॐकार आकार में उकेरा गया है।

४. छठवीं शताब्दी की गणेश मूर्ति जिसमें वह माता पार्वती के साथ नृत्यरत मुद्रा में हैं। इस प्रतिमा का उत्खनन भी इडर के टींटोई गाँव से किया गया था। उल्लेखनीय है कि इस प्रतिमा में गणेश जी की उंचाई पार्वती जी के समकक्ष है।

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