बटुक भैरव
भैरव शृंखला के प्रथम तीनों भाग पढने के लिए निम्न लिंकित संदर्भों का अध्ययन करें।
आगम के रूपमण्डन में बटुक भैरव का वर्णन कुछ इस प्रकार से किया गया है।
खट्वाङ्गमांसपाशं च शूलं च दधतं करैः ।
डमरुं च कपालं च वरदं भुजगं तथा ॥
आत्मवर्णसमोपेतसारमेयसमन्वितम् ।
ध्यात्वा जपेत्सुसंहृष्टः सर्वान्कामानवाप्नुयात् ॥
बटुक भैरव की प्रतिमा आठ भुजाधारी चाहिए। श्लोकानुसार खड्ग, मांस, कपाल, पाश, त्रिशूल जैसे आयुधों के अतिरिक्त उनके हाथ में डमरू तथा सर्प का भी विधान है। भैरव रक्षक देवता हैं इसलिए उनका बांया हाथ अभय मुद्रा में होना आवश्यक है।
बटुक भैरव के वाहन श्वान का वर्ण भी भैरव के समान ही रखा जाना चाहिए। उपरोक्त श्लोक में यह भी कहा गया है कि भैरव के इस रूप का ध्यान करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
रूपमण्डन के अलावा बटुकभैरवकल्प में भी भैरव के इस रूप का वर्णन मिलता है जो कुछ इस प्रकार है।
विकीर्णलोहितजटं त्रिनेत्रं रक्तविग्रहम् ।
शूलं कपालं पाशं च डमरुं दधतं करैः ॥
नानारूपैः पिशाचैश्च नानारूपगणैर्वृतम् ।
श्वानारूढं च निर्वाणं वटुकं भैरवं भजे ।।
बटुकभैरव के इस रूप में लौह सी लाल रंग की जटाएं, शिव की भांति तीन नेत्र और एक रक्त वर्णी लाल रंग का शरीर होना चाहिए।
रूपमण्डन की तरह इसमें भी भैरव की भुजाओं में त्रिशूल, पाश (चाबुक जैसा आयुध), डमरू और कपाल धारण कराना चाहिए।
भैरव प्रतिमा के आसपास पिशाचों का चित्रण हो और शिव गणों की भी उपस्थिति हो ऐसा कहा गया है। नग्न भैरव के वाहन के रूप में श्वान की उपस्थिति का भी उल्लेख किया गया है।
हालांकि बटुक भैरव की प्राप्य प्रतिमाओं में से अधिकांश अष्टभुज ना हो के चतुर्भुज हैं। बाकी के प्रतिमा लक्षणों में कोई उल्लेखनीय अंतर नहीं पाया गया।
दक्षिण भारत की प्रतिमाओं में आभूषणों से युक्त भैरव को जटामुकुट के साथ अग्नि ज्वालाओं के साथ भी दिखाया गया है।
क्रमशः