वन में कपिल मुनि का आश्रम था। ऋषि अपने शिष्यों के साथ वहाँ रहते थे। एक समय की बात है। नजदीकी राज्य के राजा अभिजित और उनकी पत्नी गुणवती का उद्दंड पुत्र गुणासुर वन में से गुजर रहा था।
उसकी सेना भूख प्यास से बेहाल थी। तभी उसने कपिल ऋषि का आश्रम देखा। भोजन की तलाश में जब वह आश्रम में पहुँचा तब आश्चर्यजनक रूप से ऋषि ने उन सभी के लिए भोजन की व्यवस्था कर रखी थी।
जब उसने इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो ऋषि ने कहा कि गणेशोपासना के फल स्वरूप उन्हें भगवान ने एक रत्न दिया है और उसी चिंतामणि रत्न की मदद से वह किसी भी मांग को पूरा कर सकते हैं।
गुणासुर को यह जानते ही रत्न प्राप्त करने का लोभ जागृत हुआ। वह राजकुमार था, उसके साथ राज्य की शक्तिशाली सेना थी। उसी बल पर उसने बलात् ऋषि से वह रत्न प्राप्त कर लिया।
एक अन्य कथा के अनुसार जब ब्रह्माजी का मन विचलित हुआ, तब उन्होंने इसी स्थान पर गणपति अनुष्ठान किया था। जिस स्थान पर ब्रह्माजी का मन स्थिर हुआ उस स्थान को ‘स्थावर’ कहा गया, थेउर उसी शब्द का अपभ्रंश है। जिस गणेश मूर्ति का अनुष्ठान कर के ब्रह्माजी का चित्त शांत हुआ, उस मूर्ति को चिंतामणि मूर्ति कहा गया।
ऋषि ने उसे चेतावनी देते हुए गणपति के आशीर्वाद से प्राप्त वह रत्न लौटाने का आग्रह किया। राजा अभिजित ने भी अपने उच्छृंखल पुत्र को ऋषि को प्रताड़ित नही करने के लिए समझाया किन्तु अपने अहंकार के मद में चूर उसने किसी की एक ना मानी।
अंततः वही हुआ जो होना था। भीषण युद्ध हुआ। गणेश जी की शक्तिरूपा पत्नी सिद्धी ने सहस्त्र हाथ वाले योद्धा लक्ष को गुणासुर की सेना से युद्ध के लिए भेजा। युद्ध के अंत में गणपति ने गुणासुर का वध किया और उससे ऋषि का रत्न पुनः प्राप्त किया।
जब गणेश जी ने वह रत्न ऋषि को वापस लौटना चाहा तब ऋषि बोले, “यदि स्वयं गणेश जी यहाँ निवास करें तो इस रत्न की मुझे कोई आवश्यकता नहीं।”
कपिल ऋषि का यह निवेदन सुन कर गणपति बप्पा ने प्रसन्नता पूर्वक थेउर में स्वयंभू रूप में रहने का निर्णय किया।
ऐतिहासिक महत्व
चिंतामणि गणेश पेशवाओं के आराध्य देव हैं और इस मंदिर को पेशवाओं द्वारा राज्याश्रय प्राप्त हुआ था। मराठा साम्राज्य के प्रभावी शासक पेशवा माधवराव प्रथम ने अपने अंतिम दिन इसी स्थान पर बिताए थे। पेशवा माधवराव अपने हर युद्ध से पूर्व चिंतामणि गणेश का दर्शन अवश्य करते थे।
स्थापत्य
अष्टविनायक क्षेत्र के मंदिरों में इस मंदिर का व्याप सबसे ज्यादा है। मंदिर के काष्ठ मंडप में काले पाषाण से निर्मित फव्वारे की सुंदर रचना है। मंदिर परिसर में गणेशजी के अतिरिक्त महादेव, विष्णु तथा हनुमान जी के मंदिर स्थित हैं।