Mahabalipuram

दक्षिण भारत में स्थित महाबलीपुरम देश-विदेश के पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यहाँ से प्राप्य पल्लव काल के मोनोलिथ द्रविड़ शैली के प्रारंभिक स्थापत्यों में गिने जाते हैं। पल्लवों द्वारा इन स्थापत्यों को किस उद्देश्य से निर्माण कराया गया था और आज इन्हें किस रूप में पहचाना जाता है इसके विषय में चर्चा करें तो ज्ञात होता है कि वर्षों के काल खण्ड में हमारे स्थापत्यों पर मात्र धूल नहीं जमी है बल्कि इनके साथ कितनी ही भ्रांतियां भी जड़ जमा चुकी हैं।  

चलिए इसे एक उदाहरण के साथ समझने का प्रयास करते हैं। महाबलीपुरम के अनेकों स्थापत्यों में पांच रथों का सम्पुट भी है। मान्यता के अनुसार इन पांच मोनोलिथ रथों को पांच पांडवों तथा द्रौपदी के रथ के प्रतीक माने जाते हैं लेकिन जब हम इनका सूक्ष्म अवलोकन करें तो इनका रहस्य समझना इतना भी कठिन नहीं है।  

प्राप्य दस्तावेज और शिलालेखों के अनुसार इन पांच रथों का निर्माण नरसिंह वर्मन प्रथम (630–680 AD) द्वारा कराया गया था। दुर्भाग्यवश ग्रेनाइट पत्थरों से बने यह अद्भुत स्थापत्य किन्हीं अज्ञात कारणों से कभी पूर्ण नहीं हो पाए। महाराज नरसिंह वर्मन अपने शौर्य के चलते महा-मल्ल (महाबली) के नाम से प्रसिद्ध थे और इसी कारण इस नगर को मामल्लापुरम या महाबलीपुरम नाम दिया गया था।   

नरसिंह वर्मन भारतवर्ष के ऐसे राजाओं में से एक थे जो अपने जीवनकाल में एक भी युद्ध में पराजित ना हुए हों। नरसिंह वर्मन के उपरांत अपराजेय महाराजाओं की सूची में चंद्रगुप्त मौर्य, अजातशत्रु, कृष्णदेव राय, समुद्रगुप्त, राजराजा चोल प्रथम तथा उनके पुत्र राजेंद्र चोल का समावेश होता है। चोल वंश के अपराजेय राजसूयम वेत्ता पेरूनारकिल्ली को भी इस सूची में समाविष्ट किया जाता है। इनके उपरांत पेशवा बाजीराव प्रथम भी अपने शौर्य के चलते अपराजेय योद्धाओं में अपना स्थान सुनिश्चित करते हैं।

अपराजेय
द्रौपदी रथ, महाबलीपुरम में देवी दुर्गा का शिल्प

लोककथाओं में इन स्थापत्यों को पांच पांडवों तथा द्रौपदी के रथों के रूप में मान्यता मिली है. इसमें जिसे द्रौपदी का रथ माना गया है उसका अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि इस रथ का महाभारत में उल्लेखित द्रौपदी से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके प्रवेश द्वार पर दो महिला द्वारपालिका / सालभञ्जिकाओं का होना इस बात का प्रमाण है कि यह स्थापत्य किसी देवी का स्थान है। इसकी बाहरी दीवारों पर निर्मित आकृतियां भी इसी ओर इशारा करती हैं। प्रवेशद्वार बना कलात्मक पाषाण-तोरण और छोटे से शिखर के कोनों पर निर्मित कोमल नक्काशी भी यह दर्शाती है कि यह किसी देवी का स्थान है।

निश्चित रूप से यह देवी का स्थान है लेकिन जब हम इसके अंदर प्रवेश करते हैं तब एक और आश्चर्य हमारा स्वागत करता है। ठीक सामने की दीवार पर समभाग मुद्रा में पद्मासन पर एक चतुर्भुज त्रिनेत्र देवी हाथों में शंख तथा चक्र धारण किये  खड़ी हैं, उनका तृतीय हाथ अभय मुद्रा में तथा चतुर्थ हाथ कट्यावलम्बन मुद्रा में है। देवी के चरणों  के पास दो व्यक्ति किसी गूढ़ रहस्यमय अनुष्ठान में प्रवृत्त हैं। पृष्ठभूमि में पीछे हवा में चार गण विचरण करते दीखते हैं।

Agama Shloka

प्रतिमा लक्षणों का अवलोकन करते हुए हमें ज्ञात होता है कि देवी का यह उत्कीर्णन निश्चित रूप से अंशुमद्भेदागम में वर्णित दुर्गा का चित्रण है। पुरातत्वविद गोपीनाथ राव ने भी इसे दुर्गा प्रतिमा के रूप में प्रमाणित किया है। दुर्गा के इस रथ के सामने खड़ा ६ फ़ीट ऊँचा सिंह भी देवी के वाहन के रूप में उपस्थित है। इससे यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है कि यह रथ द्रौपदी से नहीं बल्कि दुर्गा से संबंधित है। 

लेकिन फिर दूसरा प्रश्न उठता है कि  दुर्गा के आसपास स्थित पात्र कौन हैं। इनका ध्यान से अवलोकन करने पर आप देख पाएंगे की देवी दुर्गा के चरणों में बैठा एक व्यक्ति किसी तीक्ष्ण वस्तु से अपने मस्तक को देवी चरणों में अर्पण कर रहा है तथा सामने बैठा व्यक्ति  देवी की अर्चना में लीन प्रतीत होता है। पृष्ठभूमि में दोनों ओर दो दो गण दृष्टिगोचर हो रहे हैं जिनमें हाथों में खड्ग लिए भूतगण भी समाविष्ट हैं।

क्या यह दृश्य उस समय किए जाने वाले तांत्रिक अनुष्ठानों का द्योतक है? क्या इस स्थान पर सच में ऐसे अनुष्ठान किए जाते थे? प्रश्न अनेक हैं लेकिन इनके उत्तर समय की गर्त में कहीं समा चुके हैं। अनंत रहस्यों और विचित्रताओं से भरे इस भारतवर्ष में सहस्रों शिल्प और स्थापत्य ऐसे ही रहस्य समेटे हुए हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

By तृषार

गंतव्यों के बारे में नहीं सोचता, चलता जाता हूँ.

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Shruti Kumari
Shruti Kumari
3 years ago

आप ने जिस सुक्ष्मता से अध्ययन किया है मुझे लगता है आप को “archeologist” होना चाहिये। हमारे धर्म के संरक्षण में आपका प्रयास अनुकरणीय है

ShivSager Mishra
ShivSager Mishra
3 years ago

बहुत खूब

श्रुति दूबे
श्रुति दूबे
3 years ago

आप ने जिस सुक्ष्मता से अध्ययन किया है मुझे लगता है आप को “archeologist” होना चाहिये। हमारे धर्म के संरक्षण में आपका प्रयास अनुकरणीय है

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