गिरीजा पार्वती माता का ही एक नाम है और गिरीजा के आत्मज माने गिरीजात्मज गणपति, जो लेण्याद्री की गुफाओं में विराजमान हैं। अष्टविनायक क्षेत्र में यह छठवां स्थान है। अष्टविनायक के अन्य क्षेत्र सुगम गाँव में स्थित हैं तो दूसरी तरफ गिरीजात्मज गणपति का स्थान दुर्गम पहाडियों पर है।
मराठी भाषा में ‘लेणी’ शब्द का अर्थ ही गुफा होता है और इसीलिए सह्याद्री में स्थित गुफाओं को लेण्याद्री कहा गया है। गणेश पुराण के उपरांत स्थल पुराण में भी इन गुफाओं का उल्लेख मिलता है। एक समय इन गुफाओं को लेखन पर्वत या गणेश पहाड़ और इस क्षेत्र को जीरापुर कहा जाता था।
३००+ सीढियाँ चढने के बाद जमीन तल से सौ फिट उंचाई पर आप गिरीजात्मज गणपति के दर्शन का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस मंदिर की अन्य एक अनूठी बात यह है कि यह गणेशालय एक ही अखंड पर्वत में उत्कीर्ण किया गया है।
यह गुफाएं पुणे के जुन्नर तालुके में स्थित हैं। लेण्याद्री की अठारह गुफाओं में इस गणपति मंदिर का स्थान आठवां है। अन्य गुफाएं बौद्ध धर्म को समर्पित हैं। यह सभी गुफाओं का रखरखाव कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आधीन है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने इसी स्थान पर गणेशजी को पुत्र (आत्मज) रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। यह स्थान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि गणपति जी ने अपने बाल्यकाल के पंद्रह वर्ष इसी स्थल पर व्यतीत किये थे।
मयुरेश्वर गणेश जी की कथा में हम पढ चुके हैं कि सिंधु राक्षस को ज्ञात था कि उसकी मृत्यु मयुरेश्वर गुणेश के हाथों होगी। इसीलिए गणेश जी को मारने के लिए उसने क्रूर, बालासुर, व्योमासुर, क्षेम्मा, कुशल जैसे अनेक राक्षसों को भेजा, लेकिन उन सभी को गजानन द्वारा मार दिया गया।
वास्तुविद् विश्वकर्मा ने इसी स्थान पर स्वयं निर्माण किये पाश, परशु, अंकुश जैसे शस्त्रास्त्र गणेश जी को प्रदान किये थे।
बरसात की ऋतु में सह्याद्री का यह प्रदेश अति रमणीय हो जाता है। आश्चर्यजनक रूप से ५१ × ५३ × ७ (L x B x H) फिट के विशाल व्याप में फैली इस गुफा में छत को आधार देने के लिए एक भी स्तंभ नहीं है।