स्थितप्रज्ञता का साक्षात्कार
लेकिन मैं उस मार्ग को छोड़ चुका था और मेरे लिए उस रास्ते पर फिर से जाना निरर्थक था।
प्राचीन से समकालीन तक…
लेकिन मैं उस मार्ग को छोड़ चुका था और मेरे लिए उस रास्ते पर फिर से जाना निरर्थक था।
ब्राह्म मुहूर्त का समय हो चला था, महादेव को संध्या वंदन करते हुए इस क्षीण अवस्था में भी बाजीप्रभु ने हूंकार किया, “हर… हर…” पीछे से हिंदवी स्वराज्य का प्रतिसाद…
वह गुरु पूर्णिमा की रात थी। चंद्र अपनी पूर्ण कला में प्रकाशमान होता यदि वह बादलों से घिरा ना होता। आषाढ़ की अमृत वर्षा पन्हाळगड के शिखरों को और भी…
महिला ने बिल्वपत्र को नर्मदा जल में भिगोते हुए शिवलिङ्ग के शिरोवर्तन पर चढ़ाया। तभी खंड के दरवाजे पर द्वारपाल ने कदम रखा।
एक तरफ शिवलिङ्ग के पक्षधरों के चेहरों पर उत्साह और आत्मविश्वास है तो दूसरी ओर औरंगजेब के पक्षधरों की बातों में घृणा और चेहरों पर क्रोध है।
अभी तो सुबह के दस ही बजे थे और पानिपत जैसे छोटे शहर में मुझे एक लंबा दिन गुजारना था। बोरियत और चिढ़ से बचने के लिए मैंने डॉरमेट्री से…
खुद ब्रह्मचर्य के मशहूर प्रयोग करने वाले गांधीजी खजुराहो की मैथुन मूर्तियों को देश की संस्कृति के लिए शर्म मानते थे और वो चाहते थे कि इन खूबसूरत प्रतिमाओं को…