वराह पुराण में भैरव की कथा तथा श्री तत्वनिधि में उनके शिल्प विधान के विषय में चर्चा हमने पिछले भाग में की। चलिए अब जानने का प्रयास करते हैं कि अन्य पौराणिक तथा आगम ग्रंथों में भैरव की कथा और शिल्प का वर्णन किस रूप में किया गया है।
वराह पुराण से भिन्न कथा हमें कूर्म पुराण में प्राप्त होती है जिसमें जिज्ञासु ऋषियों के द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में ब्रह्माजी का अहंकार छलकता है।
इस कथा में जब ऋषि सृष्टि के निर्माण की प्रक्रिया और निर्माता के बारे में ब्रह्माजी से पूछते हैं तब ब्रह्माजी स्वयं को ही समस्त जगत के निर्माण का श्रेय दे देते हैं।
ब्रह्माजी का यह मिथ्या वचन सुनकर भगवान शिव प्रकट हो जाते हैं और उनसे स्पष्टीकरण मांगते हैं। ब्रह्माजी निश्चित रूप से यह स्पष्टीकरण नहीं दे पाते और इस बात से क्रोधित हो भगवान शिव ब्रह्माजी को दंडित करते हैं।
ब्रह्माजी को दंड देने के लिए शिव अपने भैरव रूप का आवाह्न करते हैं और भैरव को ब्रह्मा के पाँचवे मस्तक को अलग कर देने का आदेश देते हैं। शिव का अनादर करते हुए असत्य आचरण करने वाले इस अहंकारी मस्तक को भैरव अलग कर देते हैं।
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में भैरव के रूप का वर्णन कुछ इस प्रकार से किया गया है।
अथातो रूपनिर्माणं वक्ष्येऽहं भैरवस्य तु ।
लम्बोदरं तु कर्तव्यं वृत्तपिङ्गललोचनम् ॥
दंष्ट्राकरालवदनं फुल्लनासापुटं तथा ।
कपालमलिनं रौद्रं सर्वतस्सर्पभूषणम् ॥
व्यालेन त्रासयन्तं च देवीं पर्वतनन्दिनीम् ।
सजलाम्बुदसङ्काशं गजचर्मोत्तरच्छदम् ॥
बहुभिर्बाहुभिर्व्याप्तं सर्वायुधविभूषणम् ।
बृहत्सालप्रतीकाशैस्तथा तीक्ष्णनखैश्शुभैः ॥
साचीकृतमिदं रूपं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ।
यदि हम शिव पुराण का अध्ययन करें तो उसमें भैरव को शिव का पूर्ण रूप माना गया है। शिवपुराण के अनुसार भैरव भीषण हैं और वे काल (समय) को नियंत्रित करते हैं इसलिए उन्हें काल भैरव कहा जाता है।
शिवपुराण में कहा गया है कि जिन मनुष्यों की बुद्धि माया के आवरण तले दबी होती है वह भगवान के इस भैरव स्वरूप को पहचान नहीं पाते। शिवपुराण में यह भी कहा गया है कि भैरव अपने शरणागत भक्तों के पापों के भक्षक हैं और इसीलिए उन्हें पापभक्षक भी कहा जाता है।
शृंखला के आने वाले भागों में हम स्कंद पुराणानुसार भैरव कथा तथा भैरव के विविध अन्य रूपों के विषय में चर्चा करेंगे!