बृहदारण्यकोपनिषद् में एक कथा है जिसमें देवताओं, मनुष्यों और दानवों को प्रजापति ब्रह्माजी “ददद” का उपदेश देते हैं। ब्रह्माजी द्वारा दिया गया यह उपदेश अगर हम सभी समझ कर अपने जीवन में उतार लें तो हमारा जीवन सफल हो जाए।
त्रयाः प्राजापत्याः प्रजापतौ पितरि ब्रह्मचर्यमूषुर्देवा मनुष्या असुरा उषित्वा ब्रह्मचर्यं देवा ऊचुर्ब्रवीतु नो भवानिति तेभ्यो हैतदक्षरमुवाच द इति व्यज्ञासिष्टा३ इति व्यज्ञासिष्मेति होचुर्दाम्यतेति न आत्थेत्योमिति होवाच व्यज्ञासिष्टेति॥१॥
अथ हैनं मनुष्या ऊचुर्ब्रवीतु नो भवानिति तेभ्यो हैतदेवाक्षरमुवाच द इति व्यज्ञासिष्टा३ इति व्यज्ञासिष्मेति होचुर्दत्तेति न आत्थेत्योमिति होवाच व्यज्ञासिष्टेति॥२॥
अथ हैनमसुरा ऊचुरवीतु नो भवानिति तेभ्यो हैतदेवाक्षरमुवाच द इति व्यज्ञासिष्टा३ इति व्यज्ञासिष्मेति होचुर्दयध्वमिति न आत्थेतियोमिति होवाच व्यज्ञासिष्टेति तदेतदेवैषा दैवी वागनुवदति स्तनयित्नुर्द द द इति दाम्यत दत्त दयध्वमिति तदेतत्त्रय शिक्षेद्दमं दानं दयामिति। ॥३॥
बृहदारण्यकोपनिषद् ॥ अध्याय ५, ब्राह्मण २
एकबार ब्रह्माजी से देवताओं ने पूछा कि आपने सृष्टि और हम सबका निर्माण किया है अब हमें क्या करना है इसका उपदेश दें।
ब्रह्माजी ने उत्तर दिया: “द”
इस द का तात्पर्य था ‘दमन’।
वैभवशाली समय व्यतीत करने वाले देवता स्वभाव से राजसिक होते हैं और ब्रह्माजी ने उन्हें इन्द्रिय निग्रह (दमन) का आदेश दिया।
फिर ब्रह्माजी के पास मनुष्य गये और उन्होंने भी यही प्रश्न पूछा कि मनुष्यों का शरीर नश्वर है, हम क्या करें जो हमारा जीवन सफल हो?
ब्रह्माजी ने उत्तर दिया: “द”
यहां ब्रह्माजी द्वारा उच्चारे गए ‘द’ का तात्पर्य था कि मनुष्य स्वभाव से लोभी और धूर्त होता है इसीलिए उसे “दान” करते रहना चाहिए।
अंत में असुरों ने ब्रह्माजी से वही सवाल पूछा, असुर बोले : हमारा स्वभाव तामसिक है और हमारा क्रोध विनाशकारी है, कृपया हमें उपदेश दें।
ब्रह्माजी मुस्कुराते हुए बोले: “द”
यहां ब्रह्माजी द्वारा बोले गए ‘द’ का अर्थ था “दया”। जो असुर हैं वह स्वभाव से क्रोधी हैं उन्हें जीव मात्र पर दया रखनी चाहिए जिससे आपका क्रोध विनाश का कारण न बने।
हम सभी वासना-विलासिता, धूर्तता-लोभ और क्रोध जैसे दुर्गुणों से ग्रसित हैं और हम सभी को अपने स्वभाव में “ददद” – दमन – दान – दया के गुणों को आत्मसात करना जरूरी है।
उपरोक्त कथा मात्र दया दमन और दान की शिक्षा नहीं दे रही है बल्कि इस कथा में एक अन्य गूढार्थ भी निहित है। इस कथा से हमें पता चलता है कि इश्वर हमें हमारे हर कार्य में मार्गदर्शन करते हुए संकेत देता है लेकिन यह हम पर निर्भर है कि वह संकेत का सही अर्थ हम समझ पाते हैं या नहीं।
Bahut achcha