ज्ञान का अर्थ है सत्य और इसी सत्य को अपने गर्भ में छुपाए बैठा है ज्ञानवापी का कुआँ… काशी में सैंकड़ों वर्षों से नंदी महाराज जिनकी प्रतीक्षा कर रहे थे उन महादेव का ज्योतिर्लिंग बड़े ही नाटकीय घटनाक्रम के बाद मिलने का दावा सनातन पक्ष कर रहा है तो दूसरी तरफ मुग़ल पक्ष इसे फव्वारा बताकर नकारने केे पुरजोर प्रयास में लगा है। एक तरफ शिवलिङ्ग के पक्षधरों के चेहरों पर उत्साह और आत्मविश्वास है तो दूसरी ओर औरंगजेब के पक्षधरों की बातों में घृणा और चेहरों पर क्रोध है। हिंदू पक्ष द्वारा किया गया दावा सच है या वर्षों से महादेव के दर्शन के लिए तरस रहे भक्तों की श्रद्धा की पराकाष्ठा भर है? इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए चलिए खंगालते हैं शिल्पशास्त्र के कुछ अलभ्य ग्रंथ और ढूंढते हैं काशी विश्वेश्वर के पदचिन्हों की छाप…
शिवलिङ्ग के शिरोवर्तन का प्राथमिक अवलोकन
हालांकि प्रमाण या साक्ष्य के रूप में हमारे पास मोबाइल कैमरे के एकमात्र विडियो फुटेज के अलावा और कुछ नहीं है। और इस फुटेज में भी विशालकाय शिवलिङ्ग के उपरी भाग से अधिक कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है इसलिए चलिए इसी विडियो का विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं।
इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, शिवलिङ्ग के प्रकार और आकारों का प्राथमिक परिचय कर लेना आवश्यक है। आगमों में तथा अन्य ग्रंथों में लिङ्गों का विस्तृत वर्गीकरण किया गया है। नैसर्गिक और मानव निर्मित लिङ्गों के आधार पर स्वयंभू लिङ्ग, मानुष लिङ्ग, ज्योतिर्लिंग; भौगोलिक स्थिति के आधार पर नागर, वेसर और द्रविड़ लिङ्ग; चलनशीलता के आधार पर स्थावर और जङ्गम लिङ्ग; द्रव्य के आधार पर पाषाणी लिङ्गों के उपरांत रत्न, काष्ठ, मिट्टी, इत्यादि पदार्थों से निर्मित लिङ्गों का वर्गीकरण प्राप्त होता है। इनके विषय में विस्तृत जानकारी आप यहां पढ़ सकते हैं।
शिवलिङ्ग का जो उपरी गोलाकार भाग विडियो में दिख रहा है उसे शास्त्रीय भाषा में “शिरोवर्तन” के नाम से व्याख्यायित किया जाता है। शिवलिङ्ग के उपरी भाग की गोलाई का सीधा संबंध लिङ्ग की लंबाई और अन्य परिमाणों से है। इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह के आयामों का भी सम्बन्ध शिरोवर्तन से है।
शिल्पशास्त्र के बृहद्ग्रंथ ‘मयमतम’ में शिरोवर्तन के पांच प्रकारों का वर्णन मिलता है:
- छत्रक (umbrella shaped)
- त्रिपुष / कुष्मांड (cucumber shaped)
- कुक्कुटांण्ड (egg shaped)
- अर्धचंद्र (half moon shaped)
- बुद्बुद (bubble shaped)
‘शिल्परत्न’ में भी शिरोवर्तन के इन्हीं पांच प्रकार का उल्लेख किया गया है।
छत्राभं त्रपुषाकारं कुक्कुटाण्डनिभं तथा ।
अर्धेन्दुसदृशं चाथ बुद्बुदाभं तु पञ्चमम् ॥
‘सिद्धांतसारावली’ में बुद्बुदाकार के अलावा बाकी के चार प्रकार का वर्णन है। ‘रुपमण्डन’ में भी इन्हीं पांच प्रकार के शिवलिङ्ग की चर्चा की गई है।
व्यापक रूप में सभी प्रमुख ग्रंथों में शिवलिङ्ग के शिरोवर्तन के निर्माण के लिए इन्हीं पांच प्रकारों का वर्णन किया गया है।
इनके अतिरिक्त लिङ्ग की लंबाई तथा व्यास के अनुपात में शिरोवर्तन के भी विशिष्ट नियम बताए गए हैं जिन्हें आद्यलिङ्ग, अनाद्यलिङ्ग, सर्वसमान लिङ्ग इत्यादि वर्गीकृत किया जाता है।
शिवलिङ्ग के निर्माण में लिङ्ग के हर भाग के आकार, प्रकार, द्रव्य, अनुपात इत्यादि का इतना खास महत्व होने के कारण आज तक रहस्यमय हैं। अभी दिख रहे शिवलिङ्ग के शिरोवर्तन का अवलोकन करने पर यह कुक्कुटाण्ड आकार का होने की संभावना प्रबल होती है। फिर भी इस लिङ्ग के प्रकार को पहचानने के लिए आवश्यक है कि उसके आसपास की सभी बाधाएं हटाई जाएं और पुरातत्ववेत्ताओं तथा आगम शास्त्रों के निष्णातों द्वारा इसका विस्तृत अभ्यास किया जाए।
खण्डित शिवलिङ्ग की फिर से पूजा कैसे करें?
अब बहुत से लोगों का प्रश्न यह भी है कि मुग़लों द्वारा खण्डित किए गए लिङ्ग की पुनः स्थापना, उपासना कैसे करें। यदि वजुखाने में मिली आकृति के उपर जोड़े गए सिमेंट जैसे पदार्थ को सावधानी से हटा दिया जाए तो निसंदेह यह शिवलिङ्ग ही है। प्रथमदृष्टया लग रहा है कि औरंगज़ेब के अनुयायियों ने इस शिवलिङ्ग में छेद करने या उसके उपर सिमेंट लगा कर उसका आकार विकृत करने का प्रयास किया है। यदि उन्होंने शिवलिङ्ग से कुछ छेड़छाड़ की भी है तो इसका निराकरण भी हमारे ग्रंथों में प्राप्य है।
काशी के महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक हैं और ज्योतिर्लिङ्गों को स्वयं में ज्योतिर्पुंज माना गया है। भारतवर्ष पर हुए विधर्मी आक्रमणों के पश्चात लिखे गये वामदेव कृत “जीर्णोद्धार दशक” जैसे ग्रंथों में विग्रहों के पुनःस्थापन एवं देवालयों के जीर्णोद्धार के विषय में विशद चर्चा की गई है। ग़ज़नवी, ग़ोरी तथा अलाउद्दीन ख़िलजी और उसके सेनापति मलिक कफूर जैसे धर्मांधों द्वारा भारतवर्ष में बड़े पैमाने पर विनाश किया और समय बीतने के साथ उपेक्षित खंडित मंदिरों तथा विग्रहों की अवहेलना भी हुई। राज्याश्रय के अभाव में, भीरु प्रजा की अवहेलना झेलते इन मंदिरों को खंडहरों में परिवर्तित होते देर ना लगी। यदि किन्हीं कारणों से ज्योतिर्लिङ्ग का कोई भाग खंडित हो जाए, तो उस परिस्थिति में उस क्षतिग्रस्त भाग को सोने या ताम्बे जैसी धातुओं से शिवलिंग के साथ जोड़ दिया जाता है। जैसे कहा गया है कि लिङ्ग के मध्य में अधोलंब छेद करने का प्रयास किया गया है, इस स्थिति में उस भाग को स्वर्ण से भर कर शिवलिङ्ग की पुनः प्रतिष्ठा की जानी चाहिए।
अयोध्या, काशी विश्वेश्वर तथा मथुरा जैसे मामले हम हिंदुओं के लिए यही बोधपाठ ले कर आए हैं कि यदि हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहरों का रक्षण करना है और उन्हें पुनः प्राप्त करना है तो हमें हमारे विलुप्त हो रहे ग्रंथों का अध्ययन करना होगा। यह लेख ऐसे ही एक भारतीय कला के विद्यार्थी का नम्र प्रयास है।
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