बदामी के चौलुक्यों ने कांचीपुरम पर धावा बोला, पल्लवों को पराजित कर नगर में प्रवेश किया और नगर में प्रवेश करते ही देखा एक भव्य शिवालय, कैलाशनाथर!
विजेता चौलुक्य सेनापति मन्दिर के वास्तुविदों & कलाकारों को अपने साथ पट्टाडकल ले आया और वहां निर्माण किया कांचीपुरम से भी ज्यादा कलात्मक विरुपाक्ष मन्दिर!
पत्तदकल के शिलालेखों से यह स्पष्ट है कि पल्लवों पर विजय की स्मृति में इन देवालयों का निर्माण कराया गया था।
समय का पहिया फिर से घुमा, राष्ट्रकूट सैन्य ने बदामी पर आक्रमण किया, चौलुक्य हारे। अब कलाकारों का नया पता था इलापुरी (एलोरा) और यहां इन्होंने निर्माण किया विश्वप्रसिद्ध कैलाश मन्दिर का, यह एक ही शिला से बना मन्दिर आज भी पर्यटकों को अपनी लाजवाब कलाकृतियों से आकर्षित करता है।
कांचीपुरम तमिलनाडु में है, बदामी कर्नाटक में और एलोरा महाराष्ट्र में! चौलुक्यों ने कैलाशनाथर ध्वस्त नहीं किया, उससे भव्य विरुपाक्ष का निर्माण कराया! राष्ट्रकूटों ने विरुपाक्ष से भी कलात्मक कैलाश मन्दिर का निर्माण कराया!
यहाँ एक बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि यूट्यूब एक्सपर्ट्स कुछ भी कहें इन मंदिरों के निर्माण में परग्रही एलियन का कोई योगदान नहीं था। इन मंदिरों के निर्माण की समग्र प्रक्रिया हमारे पूर्वज भारतीयों द्वारा हुई है और इस बात को हर भारतीय को गर्व से कहना चाहिए!
कांचीपुरम का कैलाशनाथर मंदिर पल्लव शासकों ने सन ६८५ से सन ७०५ के समयावधि में निर्मित कराया। पत्तदकल के विरूपाक्ष मंदिर का निर्माण काल सन ७४५ का रहा और इसका निर्माण बदामी के चालुक्यों ने कराया। राष्ट्रकूट शासकों द्वारा एलोरा के कैलाश मंदिर का समय काल ७५६ से ७७३ था।
मात्र सौ वर्ष की अवधि में तीन महान निर्माण भारत के विभिन्न प्रदेशों में हुए और इन तीनों के मूल निर्माता एक ही थे। यदि आप इन तीनों शिव मंदिरों का अवलोकन करेंगे तो आपको इनमें अनेकों समानताएं द्रष्टिगोचर होंगी। लेकिन यदि आप इनका जटिल अभ्यास करेंगे तो जान पाएंगे कि निर्माण प्रक्रिया के दौरान इनकी कला और स्थापत्य में श्रेष्ठता उत्तरोत्तर बढती रही।
किसीने अपनी लाइन लंबी करने के लिए दूसरों की लाइन नहीं मिटाई! एकदूसरे के मंदिर ध्वस्त करना उनका उद्देश्य नहीं था, उनका उद्देश्य था कलात्मकता और भव्यता को अपने क्षेत्र में स्थापित करना!
राज्यों में प्रदेश और वैभव के विस्तार के लिए रक्तरंजित भीषण युद्ध होते रहे हैं लेकिन इन युद्धों का असर हमारे कला-वैभव पर कभी नहीं पड़ा! कांचीपुरम से बदामी और बदामी से एलोरा तक स्थापत्य कला का ब्लूप्रिंट आगे बढ़ता रहा और उसमें नये आयाम जुड़ते गए!
आपकी एलोरा की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाएगी जब तक आप पट्टाडकल के विरुपाक्ष मन्दिर की यात्रा नहीं कर लेते और पट्टाडकल के स्थापत्यों का आधार कांचीपुरम है तो कांचीपुरम भी जाना ही होगा… यह एक अनवरत यात्रा है… यह भारत की यात्रा है!
* सभी तस्वीरें गूगल से साभार