सृष्टि के सृजन और मनुष्यों के इस सृष्टि पर उत्पत्ति के साथ ही ईश्वर की खोज और ईश्वर के सानिध्य की लालसा भी कदाचित स्वतः उत्पन्न हो जाती है। साथ ही इस प्रश्न का भी उद्गम होता है कि मनुष्य ने सर्वप्रथम ईश्वर की आराधना किस रूप में की होगी?

कई सभ्यताओं का अध्ययन करके एवम् इतिहास, पुराणों के आधार पर इस विषय में अनेकों मत दिए गये हैं। सिंधु घाटी सभ्यता हो या मिस्र की सभ्यता, चाहे सुदूर किसी द्वीप की सभ्यता सभी सभ्यताओं में मिले सनातन के अवशेष यह सुनिश्चित करते हैं की जम्बूद्वीप किसी समय विश्व में धर्म और निति का ध्वजावाहक रहा होगाहोगा।

ऐसे में भिन्न – भिन्न स्थानों पर किये गये शोध कहीं पशुपति के चिन्ह देते हैं तो कहीं हिरण्यगर्भ के तो कही जगन्माता के।

मेरे विचार में सर्वप्रथम मनुष्यों ने ईश्वर का दर्शन व् चित्रण सूर्य के रूप में किया होगा। हमारी प्रत्येक सुबह के साक्षी व् सृष्टि के आधार सूर्यनारायण केवल हिन्दुओं द्वारा ही नही वरन् सभी वैश्विक सभ्यताओं द्वारा पूजे गये हैं।

भारत में एक समय में सूर्य आराधना अपने उत्कर्ष पर थी परन्तु बर्बर कबिलाइयों एवम् मनुष्यत्व के भक्षकों ने एक दीप्त सूर्य के प्रकाश को राहू के समान ग्रहण लगाने में लेश मात्र भी संशय नही किया।

वेदों में सूर्य सूक्त व सूर्य मन्त्रों के द्वारा हिरण्यगर्भ ईश्वर का सूर्य के रूप में वंदन किया जाता है। गायत्री मंत्र हो या आदित्य हृदय स्त्रोत या आदित्य द्वादश नाम सभी मानव जाति के कल्याण के लिए ऋषि महर्षियों ने आदि देव से प्राप्त किए हैं।

सूर्य देव की उपासना व सौर मत के उपासक अब अधिकतर लुप्तप्राय हो चुके हैं परंतु कई स्थानों पर सिद्ध स्थलों व कई उपासना पद्धतियों ने आज भी सूर्योपासना को जीवंत रखा है।
इस शृंखला में हम सूर्योपासना से जुड़े विभिन्न आयामों पर चर्चा करेंगे।

भगवान सूर्यनारायण का विग्रह

चक्षोः सूर्यो अजायत 
(पुरुष सूक्त)
सूर्य भगवान के नेत्र हैं।

भगवान सूर्यनारायण के विग्रह में उनके रथ को खींचने वाले ७ घोड़े सुसज्ज्ति होते हैं। पहचानने का दूसरा तरीका सूर्य मुद्रा है। चित्र में दाहिने हाथ की अनामिका का निरीक्षण करें। सूर्य देव अपने हाथों में पूर्ण खिले कमल का फूल धारण करते हैं।

७ घोड़ों में से प्रत्येक प्रकाश के एक घटक को दर्शाता है। सात अश्वों के नाम हैं: गायत्री, बृहति, उष्णिह, जगती, त्रिष्टुभ, अनुष्ठुभ और पंक्ति।

सूर्य के साथ ७ अन्य दिव्य विग्रह होते हैं: आदित्य, एक ऋषि, एक गंधर्व, एक अप्सरा, एक यक्ष, एक नाग और एक राक्षस। संख्या ७ सूर्य से जुड़ी बहुत महत्वपूर्ण संख्या है।

अंशुमान और सुप्रभेद आगम में उल्लेख है कि सूर्यनारायण की मूर्ति के २ हाथ होने चाहिए, जिनमें से प्रत्येक में कमल हो। उसका सिर एक कांतिमंडल (प्रभामंडल) से घिरा हुआ दिखाया जाता है। उनके मस्तक पर एक मुकुट होता है जिसे करंडमुकुट कहा जाता है। उनके विग्रहों में उन्हें माणिक से बने कुंडलों से सुशोभित भी दिखाया जाना चाहिए।

अहर्नाभिस्तु सूर्यस्य एकचक्रस्य वै स्मृतः।

सूर्यनारायण के विग्रह पर एक हार और एक यज्ञोपवीत भी सुशोभित होता है। उन्हें एक पद्म (कमल) पर आसीन दिखाया जाता है, जिसे ७ घोड़ों वाले रथ द्वारा खींचा जाता है।

सूर्य के रथ को मकरध्वज कहा जाता है। इस रथ में केवल एक पहिया होता है एवं १२ तिल्लियाँ होती हैं। इस रथ का संचालन अरुण करते हैं।

आगमों के अनुसार सूर्यनारायण के दोनों ओर उनकी दो पत्नियां उषा और प्रत्यूषा खड़ी होनी चाहिए।

आगम कहते हैं कि उपरोक्त के साथ, सूर्य को दण्ड एवं पिंगल के साथ होना चाहिए, जो उनके द्वारपाल के रूप में सेवा करते हैं।

पद्मासन: पद्मकर: पद्मगर्भसमद्युति:
सप्ताश्व: सप्तरज्जुश्च: द्विभुज: स्यात् सदा रवि:
(मत्स्य पुराण)

मत्स्य पुराण में सूर्यनारायण के रूप का वर्णन किया गया है। शिवजी कहते हैं – हे नारद चित्र प्रतिमादि में सूर्यदेव की दो भुजाएँ निर्दिष्ट हैं। वे कमल के आसन पर विराजमान रहते हैं व् उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित होता है. उनकी कांति कमल के भीतरी भाग सी है और वे सात घोड़ो तथा सात रस्सियों से जुते रथ पर आरूढ़ रहते हैं।

उत्तर भारत में कई स्थानों पर सूर्य देव को ४ भुजाओं के साथ भी चित्रित किया जाता है। द्वारपालक दण्ड और पिंगल की आकृतियों का भी यहाँ उल्लेख है।

मतस्य पुराण के १२४ वें अध्याय में सूर्य देव की गति, व्यास, स्थानादि के विषय में भी बताया गया है।

नवयोजन साहस्त्रो विस्तारो भास्करस्य तु।
विस्तारात त्रिगुणश्चापि परिणाहोत्र मंडले।।

इसी प्रकार इस अध्याय में उदय-अस्त, दिन-रात आदि के कारणों का भी स्पष्ट वर्णन मिलता है. साथ ही १२५वें अध्याय में सूर्य के द्वारा वृष्टि (वर्षा) होने की प्रक्रिया भी बतलाई जाती है.

सूर्य एव तु वृष्टिनां स्रष्टा समुपदिश्यते।

उत्तर भारतीय विग्रहों में सूर्य देव के हाथों में खेतक (ढाल) और एक सुला (भाला) लिए हुए दिखाया जाता है। इसके अतिरिक्त रेवंत, यम, मानुस, शनि और सूर्य के अन्य पुत्रों के स्वरूप भी कई स्थानों पर पौराणिक विवरण के आधार पर दर्शाए गए हैं।

इस शृंखला की अगली कड़ी में सूर्य देव के विभिन्न मंदिरों के विषय में चर्चा की जाएगी।

।।ॐ आदित्याय नमः।।

References:
स्कंद पुराण
मत्स्य पुराण
Agama Shastras

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