ऐसे समय जब हिन्दी कविताओं का स्तर अपने न्यूनतम बिदुओ को छू रहा है, छन्दहीन कविता और रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कचरा परोसा जा रहा है, सूर तुलसी, रहीम, प्रसाद, अज्ञेय कहीं खो से गये हों और रीतिकाल भक्तिकाल से प्रारंभ हुआ सफर छायावादी युग एवं तारसप्तक को पार कर वर्तमान दिग्भ्रमित युग में खड़ा हो जहाँ न अर्थ, न शब्द, न भाव प्रधान रह गये हों, उस समय साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद के सहयोग से प्रकाशित शृंगार रस के मधुर कवि ‘श्री कल्पेश वाघ’ जी का काव्य संकलन ‘समय अभी तक वहीं खड़ा है‘ पाठकों को नीरस निर्जल मरुस्थल में मरुद्यान से आते हुए शीतल वायु के झोंके सा प्रतीत होता है । 396 पृष्ठों की यह पुस्तक सुंदर मुखपृष्ठ एवं आकर्षक शीर्षक के साथ सहज पाठकों का ध्यान आकृष्ट कर लेती है। पृष्ठभाग पर लेखक संक्षिप्त परिचय एवं ‘संस्मय प्रकाशन’ का नाम दिया हुआ है।
पुस्तक सुंदर और स्पष्ट छपाई में है। संकलन मे 72 कविताएँ शीर्षक के साथ तथा कुछ लघुकविताएं मुक्त रचना के रूप में है। देवी शक्ति को प्रणाम कर कविताओं की यह सरस यात्रा जीवन के विभिन्न आयामों को छूती हुई शृंगार के मधुर सरोवर तक पहुंचती है और पाठक उनमें डूब-डूब जाता है । ‘जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ: के उदाहरण पर जितना आप कविताओं को गाते हुए लेखक से एकात्म होते हैं, उतना ही हृदय के उद्गारों की सरसता आपको भिगोती जाती है। यह पुस्तक अमेजान सहित अन्य स्थानों पर भी उपलब्ध है। निश्चय ही कविता प्रेमियों के लिए यह एक पठनीय एवं संग्रहणीय संकलन है।
प्रेम-प्रणय के मधुर द्वंद में, कौन कनिष्ठित कौन बड़ा है
मृगनयनी के कुंतलवन का, पुष्पपाश वह भग्न पड़ा है
तुम कह दोगी इन अधरों से, निर्णय मान्य मुझे वह होगा
तुमने जहाँ छुआ था मुझको,समय अभी तक वहीं खड़ा है