पश्चिम बंगाल के आधुनिक मानव निर्मित सुरुचिपूर्ण सुन्दर स्थानों की चर्चा करें तो वीरभूम बोलपुर स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय और कवींद्र रवींद्र के घर, कला संस्थान और शांति निकेतन को नहीं नकारा जा सकता।
कला, संस्कृति इतिहास और सौन्दर्य की ऐसी छटा कम ही देखने को मिलती है। कला संस्थान के प्रथम प्रधानाचार्य नंद लाल बसु के शिष्य श्री अमृत लाल वेगड़ जी रचित नर्मदा परिक्रमा पुस्तकों ने इस वर्ष मन मोह लिया ।
जितना सौन्दर्य शिल्पों में देख कर आई हूँ, उतना ही सौन्दर्य वेगड़ जी की पुस्तकों से रिस रिस कर मेरे हृदय तक पहुँच रहा था। उनकी चित्रण शैली में उन्होंने नदी व परिक्रमा वासियों के चित्र ही नहीं खींचे अपितु नर्मदा के विविध रूप भी चित्रित किए हैं।
अमरकंटक की शांत बच्ची नर्मदा, धुआंधार की भीषण अस्थिर नर्मदा, छोटे प्रपातों में अटखेलियां करती नर्मदा, ओंकारेश्वर की शांत, संभली हुई, परिपक्व नर्मदा – सभी को अपने शब्दों का मान दिया है।
कहते हैं नर्मदा शिव की विशिष्ट पुत्री हैं जिनके दर्शन मात्र से संसार के त्रिविध ताप दूर हो जाते हैं। नर्मदा को छूते हर ठीकरे को महादेव का आशीर्वाद है कि वह अपने भीतर महादेव की ऊर्जा धारण कर सके। सत्य सुन्दर शिव हो जाय।
मेरी पिछली मध्य एशिया की यात्रा के समय मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था पर यात्रा तय थी तो जाना ही था। एमिरेट्स का विमान सुबह नौ बजे कोलकाता से जब उड़ा तब फ्लाइट राडार पर दिख रहा था कि उड़ान समस्त भारतीय भूखंड को कर्क रेखा के पास से पार कर मध्य एशिया को जायेगी।
थोड़ी देर उड़ने के बाद नीचे गंतव्य दिखा हैदराबाद? अरे वाह ये तो दक्षिण को जा रहे हैं। फिर एक और स्थानक दिखा – अजंता! मन प्रसन्न हो उठा। कुछ महीने पहले ही तो वहां हो कर आई हूं। भूभाग कितना सुन्दर है यहां।
उचक कर खिड़की में से नीचे देखना शुरू कर दिया। सैंतीस हजार फुट की ऊंचाई से भारतीय भूखंड का परिदृश्य बहुत सुन्दर दिखाई दे रहा था कि अचानक मेरी नज़र एक बहुत बड़ी नदी पर पड़ी जो पूर्व से पश्चिम दिशा को बहती जा रही थी।
फ्लाइट थोड़ी उत्तर की ओर मुड़ने लगी। नदी मेरी दृष्टि में थी मानो साथ-साथ चल रही हो। एक उपनदी के भी दर्शन हुए जो उत्तर की तरफ़ से आ कर बड़ी नदी में समा गई। संगम दर्शन- जय हो! दोनों नदियाँ एक होकर थोड़ी देर में सागर से जा मिलीं।
मैं नदी देखने में इतनी मगन थी कि यह सोचा भी नहीं कि यह कौन सी नदी हो सकती है। विमान का फ्लाइट राडार दिखा रहा था कि हम खम्भात की खाड़ी पर से उड़ रहे हैं।
मां नर्मदा!!
भाव विह्वल हो गई। नर्मदा ने इस तरह दर्शन दिए!!
बचपन में पढ़ी/सुनी एक बात याद आ गई। दरश परश अरु मज्जन पाना..। किसी भी नदी का दर्शन, संस्पर्श, मुख प्रक्षालन और जल पान करने से नदी का आत्मिक तत्व हमें प्राप्त हो जाता है।
नर्मदा परिक्रमा की पुस्तकों को पढ़ने के बाद से ही ओंकारेश्वर, जबलपुर, भेड़ाघाट, महिष्मति जाने की प्रबल इच्छा हो रही है; एक छोटी ही सही परिक्रमा करने की इच्छा हो रही है किंतु उपाय नहीं है। मेरी इच्छा का एक अंश मां नर्मदा ने ऐसे पूरा किया?
आज भी जब इस काकतालीय ( coincidental) घटना के बारे में सोचती हूं रोम-रोम पुलकित हो जाता है। अपने सौन्दर्य का साक्षात दर्शन और आशीर्वाद, एक नगण्य शिव भक्त को यूँ ही दे दिया?
माँ नर्मदे! तेरे हृदय में विश्व समाहित है।
चमकता भारतीय भूखंड, जंगलों को चीरकर सागर में विलीन होती नर्मदा, नारंगी सागर तट, गहरा नीला सागर जल मेरे मन में एक अमिट छाप छोड़ गए हैं। मनुष्य अपनी सोच से सीमित है अन्यथा विश्व अत्यंत सुन्दर स्थान है।
मुझे अपने पास बुलाना माँ नर्मदा, यह कथा अभी असमाप्त है।
नर्मदे हर
दरस परस मज्जन अरु पाना।
हरई पाप कह वेद पुराना ।।
वाह क्या खूब, अद्भुत ।