यदि ये प्रश्न हो कि भारत का वो प्राचीनतम मंदिर कौन सा है जहां आज भी नित्य पूजा पाठ और अन्य विधियाँ उसी प्रकार हो रही हैं जैसे आज से सहस्रों वर्ष पूर्व होती थीं तो क्या उत्तर होगा आपका?
माता मुंडेश्वरी मंदिर जो बिहार के कैमूर जिले के रामगढ़ गांव में पंवरा पहाड़ी पर लगभग ६०८ फिट की ऊंचाई पर स्थित है। पुरातत्व विभाग (ASI) की माने तो यह मंदिर १०८ ईसवीं में बनाया गया था। तदुपरांत लगभग १९०० वर्षों से इस मंदिर में अनवरत पूजा की जा रही है।
उत्तर भारतीय नागर शैली में बना यह मंदिर १९१५ में ASI के संरक्षण में आया।
लोक श्रुति व पौराणिक वर्णनों के अनुसार माता के चण्ड के संहार के उपरांत मुण्ड नामक असुर के भयभीत होकर भाग जाने पर उसे इस क्षेत्र में ढूंढ़ कर उसका वध किया।
वर्ष 1812 ई○ से लेकर 1904 ई○ के बीच ब्रिटिश यात्री आर.एन.मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन और ब्लाक ने इस मंदिर का भ्रमण किया था। पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ से प्राप्त शिलालेख 389 ई0 के बीच का है जो इसकी पुरानता को दर्शाता हैI
मुण्डेश्वरी भवानी के मंदिर के नक्काशी और मूर्तियों उतरगुप्तकालीन है। यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है। मंदिर में देवी की वाराही स्वरुप में पूजा होती है व उनका वाहन महिष है।
मंदिर में चार ओर से दरवाजे खुलते हैं व द्वारपाल के रूप में गंगा यमुना आदि देवियों का चित्रण भी यहां प्राप्त होता है।
इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है I जिस पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित किया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है।²
मुख्य मंदिर के पश्चिम में पूर्वाभिमुख विशाल नंदी की मूर्ति है, जो आज भी अक्षुण्ण है।
हालांकि मंदिर का शिखर अब नष्ट हो चुका है और उसके स्थान पर संरक्षण के लिए छत का निर्माण किया गया है।
मुण्डेश्वरी या मण्डलेश्वर का यह अष्टकोण पत्थर का बना मन्दिर बिहार के सबसे प्राचीन और सुन्दर मन्दिरों में से है। यहां से मिले एक शिलालेख से पता चलता है कि यह मन्दिर ६३५ ई० में विद्यमान था । इस मन्दिर की दीवारों पर सुन्दर ताखे, अर्धस्तम्भ और घट-पल्लव के अलंकरण बने हैं। दरवाज़े के चौखटों पर द्वारपाल और गंगा-यमुना आदि की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मन्दिर के भीतर चतुर्मुख शिवलिङ्ग और पत्थर के दो विशाल पात्र हैं। मन्दिर का शिखर नष्ट हो चुका है और इसकी छत नई है।
मंदिर के माहिती पट्ट से
यहाँ पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है परंतु उसका वध नहीं किया जाता है बलि की यह सात्विक परंपरा पुरे भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं नहीं है। बलि के रूप में समर्पित बकरा कुछ समय मृतप्राय अवस्था में रहता है परंतु जल डालते ही पुनः चेतन हो जाता है।³
अन्य नागर शैली के मंदिरों के समान ही यह मंदिर भी पंचायतन विधान का पालन करता है। यहां शिव व शक्ति के साथ विष्णु, गणेश सूर्य भी विद्यमान हैं।
सातवीं शताब्दी में शैव परंपरा के शीर्ष पर चतुर्मुख लिंग के रूप में विनितेश्वर शिव की स्थापना यहां की गई। जब कैमूर की पहाड़ियों में चेरों का शासन हुआ तो शक्ति की आराधना अपने शिखर पर पहुंची। तब वहां मंदिर की एक दीवार में माता की दुर्गा रूप में एक मूर्ति भी स्थापित की गई।⁴
पहाड़ के पीछे की ओर एक विशिष्ट स्थान है, जिभिया माई। यहां जीभ के आकार के एक पत्थर के उपर कुछ प्रागैतिहासिक आकृतियों व लिपियों के चिन्ह मिलते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन लिपियों को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।⁵
इस मंदिर के कई शिलालेख व मूर्तियां गुप्त काल के स्वर्णिम दौर की हैं।
बख्तियार खिलजी ने इस मंदिर को ध्वस्त करने के कई प्रयत्न किए। कई खण्डित मूर्तियां व अभिलेख (जिनमें से कुछ कोलकाता संग्रहालय में संग्रहित किए गए हैं) आज भी उपेक्षित अवस्था में अपने संरक्षण की आस लगाए बैठे हैं।
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संदर्भ सूची:
- https://archive.org/details/dli.ministry.10269/page/159/mode/1up?q=Mundeshwari&view=theater
- https://www.google.com/amp/s/www.bhaskar.com/amp/local/bihar/news/the-color-of-every-shivling-changes-every-time-mundeshwari-temple-was-built-in-108th-century-ie-kushan-period-128312093.html
- https://hindi.news18.com/amp/photogallery/bihar/kaimur-mundeshwari-dham-mysterious-temple-of-kaimur-goat-sacrifice-without-shedding-blood-panchmukhi-shivling-brvj-3769154.html
- बिहार सरकार पर्यटन विभाग।
- https://youtu.be/XhzeI0bkzAc
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