वर्ष 2019 में ही तृषार की एक ट्वीट पढ़ी थी कि उत्तर कर्नाटक में कोरवंगला नामक स्थान पर लगभग एक हजार वर्ष पुराना ऐसा शिव मंदिर है जहां के प्रस्तर नंदी आज भी अपनी धुरी पर घूमते हैं।
मान्यता है कि महादेव अपने प्रिय भक्तों को यह अवसर देते हैं कि वे नंदी महाराज को उनके सामने घुमा सकें। यह पढ़कर इस मंदिर की यात्रा करने की तीव्र उत्कंठा मेरे हृदय में उत्पन्न हुई और मैंने कर्नाटक जाने के लिए डेरा डंडा उठा लिया।
कर्नाटक की उस यात्रा में इस मन्दिर तक पहुंचाना दुर्गम न सही दुरूह अवश्य था। हासन पहुंचने के लिए बंगलुरु या मैसूरू से तीन घंटे की रेल/सड़क मार्ग से उत्तर की दिशा में यात्रा करनी पड़ती है।
हासन के आस-पास बहुत से प्राचीन और भव्य मन्दिर हैं जिसमें चन्नकेशव बेलूर, होयसलेश्वर, ओंकारेश्वर और श्री वीरनारायण स्वामी मन्दिर उल्लेखनीय हैं किंतु करवांगला के मन्दिर के बारे मे लोगों की जानकारी कम है।
होटल रिसेप्शन की एक महिला ने बताया कि लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर करवांगला नाम की एक छोटी जगह है। एक गाड़ी ठीक करके दूसरे दिन ही मैं मन्दिर चल तो दी पर ड्राइवर दो तीन जगह रास्ता भूल गए।
स्थानीय लोगों और पुलिस वालों से पूछ कर पता चला कि उस गाँव जाने का जो रास्ता थोड़ा ठीक है वो भी टूटा-फूटा, एकल रास्ता है जो जंगल/खेत से हो कर गुजरता है। मैंने फिर भी अपना संकल्प नहीं छोड़ा और उसी रास्ते से हम आगे चले।
उस गाँव के पास कोई ट्रेन या बस स्टेशन नहीं है।कोई टेंपो या ऑटो भी मुख्य सड़क पर ही उतार देते हैं। अन्दर करीब तीन किलोमिटर आपको पैदल, साइकिल या आपका अपना वाहन ही ले जा सकते हैं।
रास्ता एक जगह जा कर समाप्त हो गया। आगे एक छिछला नाला बह रहा था। सड़क उसके नीचे थी। दूसरे पार पर पगडंडी थी। मैंने फिर ड्राइवर को रास्ता पूछने के लिए भेजा। एक साईकिल वाले ने उसे बताया कि यही रास्ता है।
पानी पार करके गाड़ी दूसरी तरफ पगडंडी पकड़ कर चली जो थोड़ी देर बाद एक सड़क से जा मिली।एक बहुत छोटे गाँव को पार करके एक केंद्र संरक्षित सुंदर किंतु छोटे मन्दिर के दर्शन हुए।
बकेश्वर मंदिर तत्कालीन होयसल शैली में ही निर्मित है। मन्दिर का प्रविष्ट द्वार दो हस्तियों के शिल्प और जय विजय से सुसज्जित है। दो गर्भगृहों वाले इस मन्दिर में बाईं ओर बकेश्वर लिंग रूप में स्थापित हैं और उन्हीं के सामने विराजमान हैं काले ग्रेनाइट पत्थर के नंदी जिनकी ऊंचाई कम से कम साढ़े तीन फुट और वजन ढाई सौ किलो के आस-पास।
उस समय मन्दिर में मैं अकेली थी। महादेव को प्रणाम करके उनके सामने ध्यान में बैठ गई। ध्यान से उठने पर मैंने नंदी जी को घूमने के लिए उनका आशीर्वाद मांगा। फिर नंदी महाराज को प्रणाम करके उन्हें घुमाने की अनुमति ग्रहण की और दाहिने हाथ से नंदी जी की प्रतिमा को उनके धुरे पर सरकाया।
असीम आश्चर्य से देखती रही कि कितनी सरलता से नंदी महाराज अपने धुरे पर पूरा एक चक्कर घूम गए। मैं अपने आप को संतुलित न रख सकी और भाव विह्वल होकर धप से बैठ गई। अश्रु वन्या की तरह प्लावित हो रहे थे। महादेव का नाम जप करती रही।
थोड़ी देर बाद संभल कर उठी तो सोचा नंदी जी तो उल्टे हो गए हैं इन्हें ठीक कर दूँ। इस बार बाएं हाथ से एक चक्कर उतनी ही सहजता से घुमा दिया। मेरे स्मित हास्य में जो तृप्ति थी उसे शब्दों में नहीं बांध पाऊँगी।
मंदिर की बाह्य दीवार पर नृसिंह अवतार की हिरण्यकश्यप को चीरती एक मूर्ति दृष्टिगोचर हुई। दूसरे गर्भगृह में शिव प्रतिमा है। शांत अर्धोनिमिलित आँखें, ध्यानस्थ।
मन्दिर की छत देखने पर कुछ वर्गाकार अनूठे शिल्प/ उकेरण दिखे जिनके केंद्र में एक चूड़ा नीचे को निकला था। ना जाने क्या सोच कर मैं इनके ठीक नीचे बैठ गई।
हर एक के नीचे बैठने पर अलग-अलग ऊर्जा अनुभव हो रही थी। बहुत देर तक आनंदमग्न बैठी रही। दो सांपों के जोड़े के उकेरण भी देखे जो एक दूसरे को तीन जगह पार कर ऊपर उठ रहे थे- इड़ा पिंगला क्या? ब्रह्मा विष्णु और रूद्र ग्रंथि के संकेत!
कुछ और मूर्तियां भी थीं जिनके विषय में मुझे कोई जानकारी नहीं थी। यद्यपि महिलाओं के लिए साष्टांग प्रणाम वर्जित है किंतु महादेव और नंदी महाराज की इस प्रसादी के बाद दोनों को साष्टांग प्रणाम करके मैं खुशी-खुशी अगले गंतव्य के लिए रवाना हो गई।
संध्या काल में मैंने तृषार को मेसेज करके बताया कि नंदी जी घूम गए थे तब वो बोले एक छोटा वीडियो बना लेना चाहिए था। मैं बोली कि मन्दिर में मैं अकेली थी। वीडियो कौन बनाता।
वह एक अत्यंत व्यक्तिगत क्षण था, इष्टदेव और भक्त के बीच। उसे समस्त संसार से साझा करने की इच्छा नहीं थी। आज तक उनके सिवा यह बात किसी को बताई ही नहीं है। आज महादेव की प्रेरणा से ही यह लिख कर आप तक पहुंचा रही हूं।आप भी एक बार जाइए न!