क्या आप जानते हैं कि बंगाल में कई स्थान ऐसे हैं जहां पर 108 शिव मंदिर हैं! आइए चलें मंदिरों की नगरी अंबिका काल्ना जहां की अधिष्ठात्री देवी मां अंबिका सिद्धेश्वरी हैं। भागीरथी नदी के पश्चिम तट पर बसा यह नगर आज से दो सौ साल पहले एक प्रमुख बंदरगाह और व्यापार केन्द्र था।
मंदिरों के इस नगर की अन्यतम रचना है नव कैलाश मंदिर जो कि 108 टेराकोटा (ईंट) से बने शिव मंदिरों का समूह है। कोलकाता से लगभग 90किमी दूर इस नगर तक पहुंचने का सरलतम उपाय है हावड़ा से चलने वाली “काटवा लोकल ट्रेन” जो दो घंटो में अंबिका कालना पहुंच जाती है।
सियालदाह और बर्धवान से भी यहां पहुंचने के साधन हैं। कोलकाता से सड़क मार्ग से बसें व टैक्सी भी उपलब्ध हैं।
कालना रेलवे स्टेशन से एक किमी दूर है यह नव कैलाश मंदिर जहां तक पहुंचने के लिए स्टेशन के बाहर ई रिक्शा मिलते हैं। नव कैलाश मंदिर दो वृत्तों में 108 टेराकोटा मंदिरों का समूह है।
केंद्र संरक्षित इस स्थान पर कोई प्रवेश टिकट नहीं है। मंदिर में प्रवेश करते ही त्रुटिहीन ज्यामितीय दो वृत्तों में सजे छोटे छोटे शिव मंदिर दृष्टिगोचर होते हैं।
बाह्य वृत्त में 74 तथा अंतर्वृत्त में 34 मंदिर हैं। बाह्य वृत्त के मंदिरों में क्रमागत रुप से शिवलिंग श्वेत व कृष्ण प्रस्तर के हैं जो महादेव के रूद्र तथा सदाशिव रुप का प्रतिनिधित्व करते हैं। अंतर्वृत के सभी शिवलिंग श्वेत प्रस्तर के हैं। सभी शिवलिंग उत्तराभिमुख हैं अथैव क्रमागत रुप से शिव दर्शन करने पर शिवलिंग दाहिनी ओर घूमते से दिखते हैं।
अन्दर के मंदिरों के भीतर कुछ रिक्त स्थान है जिसके केंद्र में एक गहरा कूप है जिसे पुरातत्व विभाग ने ढक दिया है। एक जनश्रुति के अनुसार शिव जी के जलाभिषेक में व्यवधान न हो ऐसा सोच कर राजा ने यह कूप निर्माण करवाया था।
एक दूसरी अन्य जनश्रुति कहती है कि त्रुटिहीन ज्यामितीय संरचना के लिए वास्तुकारों ने केंद्र में एक वृहद प्रकार स्थपित किया था किंतु अधिकतर लोगों का मत है कि बाह्य वृत्त हमारे बाह्य संसार का सूचक है जिसमे सत्व से ले कर तमस तक सभी गुणों का समावेश है जो कि महादेव के सदाशिव रुप से रूद्र रूप तक परिलक्षित/ इंगित है।
अंतर्वृत्त हमारे अंतर्मन का प्रतीक है जो श्वेत व सात्विक है; किंतु निराकार ब्रह्म इस सत्व से परे हैं। गुणातीत हैं। उन तक पहुंचने के लिए सत्व को भी त्यागना पड़ता है। मंदिरों के केंद्र का वह कूप हमारे अन्तर के शून्य का प्रतीक है जहां निर्गुण निराकार ब्रह्म विद्यमान हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो अनुभूत सत्य यह बताता है कि शून्य ही पूर्ण है। सत्व को त्याग कर ही सत्य का साक्षात्कार होगा।
मंदिरों का निर्माण राजा तेज चांद बहादुर ने ईस्वी सन् 1809 में करवाया था। जनश्रुति है कि उनकी माता विष्णु कुमारी देवी ने अपने पति राजा तिलक चांद के मरणोपरांत एक स्वप्नादेश के पालन के लिए राजबाड़ी परिसर में, अपने पुत्र, तत्कालीन राजा तेज चांद बहादुर को 108 शिव मंदिर बनवाने को कहा था।
कालना का राजमहल व दूसरे कई प्रमुख मंदिर इसी राजबाड़ी परिसर में ही हैं (अब बीच में पक्की सड़क बन गई है)। एक और जनश्रुति है कि विष्णुपुर की संपत्ति आधिकारिक रूप से हस्तगत होने पर प्रसन्न होकर राजा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।
मंदिर का शिल्प आठ-चाला (eight sloped roofs) प्रकार का है। बंगाल में यह शिल्प प्रचलित है और बहुत मंदिर ऐसे हैं।(उदाहरणार्थ: दक्षिणेश्वर मंदिर प्रांगण के शिव मंदिर)
मंदिर की दीवारों पर राजा ने रामायण और महाभारत की कथाओं का उत्कीर्णन करवाया था जिनमें से अधिकांश शिल्प अब नष्ट हो चुके हैं।
यदा कदा पुष्प पशु पक्षियों के उकेरण दिखते हैं। भौगोलिक तथ्य है कि बंगाल में पर्वत एवं प्रस्तर खदाने नहीं हैं। इसी के चलते जहां बंगाल में टेराकोटा के मंदिर बनाए गए वैसे ही एक दूसरे भौगोलिक तथ्य अतिवृष्टि ने दो सौ वर्षों में ही उनकी अधिकांश कला का क्षरण कर दिया है।
कष्ट होता है जब ऐसे मंदिरो को क्षरण से बचाने के लिए उन पर रंग रोगन कर दिया जाता है पुरातत्व विभाग ने मंदिर बचाने की चेष्टा अवश्य की है किंतु अधिकांश कला अवहेलना और क्षरण से नष्ट हो चुकी है।
राजा ने इस मंदिर में पूजा करने के लिए बारह पुरोहित नियुक्त किए थे। अब कितने पुरोहित हैं पता नहीं किंतु प्रत्येक मंदिर में प्रतिदिन पूजा होती है और शिवरात्रि पर यहां एक मेला भी लगता है।
मंदिर खुलने का समय सुबह आठ बजे से बारह बजे तक व संध्या चार बजे से आठ बजे तक है। शिव भक्तों के लिए यह शिव तीर्थ सदा प्रतीक्षारत रहेगा।
So much to know apna Bharat! Kudos to the writer Doctor Tripti and Bharat Parikrama for such wonderful narrative with vivid details. Lovely article.