भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक वराह का अवतार भी है यह तो अधिकांश लोग जानते ही हैं किन्तु महादेव के वराह रूप के बारे में शायद ही आपको ज्ञात होगा। चलिए शिल्प परिक्रमा में आज भोलेनाथ की ऐसी ही एक कथा के बारे में बात करते हैं।

अप्रैल का महिना और सुबह के छह बजे का समय था। दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर में कुछ गिने-चुने दर्शनार्थी मंदिर के वैभव को अपनी आँखों में समेटने का प्रयास कर रहे थे। कैमरा और मोबाइल प्रतिबंधित होने के कारण मंदिर में सेल्फी लेने वालों और टिकटोक बनाने वालों की बाधा से मुक्ति मिलती है लेकिन इसका एक दुष्प्रभाव यह भी है कि मंदिर का शिल्प-सौंदर्य अपने कैमरे में क़ैद करने वाले भी अपनी क्षुधा शांत नहीं कर पाते।

मंदिर के पुदुमंडपम में ऐसा ही एक सौंदर्य का अभ्यासु अपनी स्केचबुक में इस भव्य स्थापत्य के शिल्प सौंदर्य को पेंसिल से उतारने का प्रयास कर रहा था। आने जाने वाले दर्शनार्थियों की नज़रों से ओझल उसका समग्र ध्यान शिल्प को कागज़ पर उतारने में लगा हुआ था। तभी उसकी स्केचिंग प्रक्रिया को पीछे से देख रह लगभग दस वर्षीय एक जिज्ञासु बालक ने पूछा, “आप ने स्केच बनाने के लिए इस मूर्ति को ही क्यों चुना? इसका तो मुख भी खण्डित हो गया है।”

स्केच बनाने में डूबे हुए व्यक्ति ने यह प्रश्न सुनते ही उस बालक की ओर देखा, उसके चेहरे पर मुस्कराहट उभरी। इस प्रश्न का उत्तर “थिरुविलयदल पुराण” में छुपा हुआ था। आस-पास से गुज़र रहे किसी भी वयस्क को यह प्रश्न नहीं सूझा लेकिन एक छोटे से बालक के मन में यह जिज्ञासा हुई, यह सोचकर वह मुस्करा उठा।

क्या है यह शिल्प और क्या है उसकी कथा?

थिरिविलयदल पुराण में उल्लेख है कि सुगलन और अगलाई नाम के एक जोड़े ने बारह पुत्रों को जन्म दिया था। कुविचारी और अल्पबुद्धि इन बालकों ने तपस्या कर रहे एक ऋषि को कष्ट दिया। आमतौर पर शांत रहने वाले और एकांत प्रिय ऋषि इस हरक़त से क्रोधित हो उठे। उन्होंने सुगलन के बारह पुत्रों को अगले जन्म में वराह योनि में पैदा होने का श्राप दिया और कहा कि जैसे तुम लोगों ने मुझे परमपिता परमात्मा के सानिध्य से बाधित किया है वैसे ही आने वाले जन्म में तुम अपने माता-पिता को खो दोगे और जैसे तुमने मुझे प्रभुकृपा के अमृत से वंचित किया है वैसे ही तुम अपनी माता के अमृतरूपी दूध के लिए तरसोगे।

कुछ समय बाद जब बालकों को अपनी धृष्टता का भान हुआ तो वह ऋषि चरणों में मस्तक रगड़ कर अपने पापों की क्षमा माँगने लगे। उनका पश्चाताप देख कर ऋषि शांत हुए, उन्होंने कहा कि श्राप को वापस लेना संभव नहीं लेकिन जब आप माता के विरह में तड़प रहे होंगे तब शिव स्वयं आप को दूध पिलाएंगे।

ऋषि के श्राप के अनुसार वे बारह बालक वराह (boar) दंपत्ति के बच्चे के रूप में पैदा हुए और पूर्व जन्म के श्राप के कारण एक पांड्य शासक द्वारा उनके माता-पिता का शिकार किए जाने पर अनाथ हो गए। बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया था, वे दूध पाने के लिए भूखे-प्यासे आक्रंद कर रहे थे। कर्मों का फल भोगते उन निर्दोषों का विलाप भगवान शिव के लिए देख पाना कष्टकारी था किन्तु जब तक कर्मक्षय ना हो, वह भी कुछ नहीं कर सकते थे। अंततः बच्चों के उद्धार का समय आ गया। महादेव उनकी पुकार सुनते हैं और वह एक वराह माता का रूप धारण कर के भूखे प्यासे बच्चों को स्तनपान कराते हैं।

मिनाक्षी मंदिर के पुदु-मंडप में इस कथा के प्रसंग शिल्प को विस्तृत रूप से उत्कीर्ण किया गया है। इसमें शिव ऊपरी हाथों में परशु (कुल्हाड़ी) और मृग धारण किए हुए हैं। मृग की आकृति आक्रांताओं द्वारा अत्यधिक विकृत की जा चुकी है। वे अपने निचले हाथों से छह बाल वराहों को अपनी छाती पर थामे हुए हैं। बाकी के छह वराह बालक इस दृश्य को अभिभूत हो कर देख रहे हैं और महादेव के इस विशिष्ट रूप से स्तनपान करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

ग्रंथ परिचय

सोलहवीं शताब्दी में मुनि परंज्योति द्वारा रचित थिरुविलयदल पुराण में शिवलीला के ऐसे ६४ प्रसंगों का वर्णन मिलता है। पांड्य वंश के शासकों पर भगवान शिव की कृपा और अन्य शिव लीलाओं का वर्णन करने के लिए इस ग्रंथ की ६४ कथाओं को तीन खण्डों में विभाजित किया गया है। यह पुराण मीनाक्षी मंदिर के स्थल पुराण के रूप में भी जाना जाता है।

ऐसे ही दुर्लभ शिल्प प्रसंगों की जानकारी के लिए आप हमारे ट्विटर अकाउंट @b_parikrama को फ़ॉलो कर सकते हैं।

By तृषार

गंतव्यों के बारे में नहीं सोचता, चलता जाता हूँ.

Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Nirmal
Nirmal
2 years ago

Thanks Trushar for sharing

1
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x