अतीत का अनुसंधान: अतीत रुपी अंधकार से वर्तमान रुपी प्रकाश की यात्रा
कथा (गल्प) एक रचना है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास- सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। वह एक ऐसा रमणीय उद्यान नहीं, जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि एक गमला है, जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुत्रत रूप में दृष्टिगोचर होता है।
~ प्रेमचंद
“अतीत का अनुसन्धान” रुपी गमले में आप एक यात्रावृतांत, वात्सल्य, रहस्य, भय, प्रेम अनुरुपी पुष्पों की सुगंध ले सकते हैं।
इस पुस्तक का शीर्षक ही इतना आकर्षित करने वाला है कि पाठक उसे पढ़ते ही कथा के प्रति उत्सुक हो जाता है। तत्पश्चात कुछ ही पृष्ठों के बाद वह कथा से जुड़ता चला जाता है। तीन शब्दों का छोटा सा शीर्षक है किन्तु एक जिज्ञासा पैदा करने में पूर्ण रूप से सफल है।
शीर्षक को पढ़कर यह जिज्ञासा होने होती है कि यह किसके अतीत की कथा है? सम्पूर्ण कथावस्तु पढ़ने के पश्चात् आप यह कहने को विवश हो जाते हैं कि इससे उपयुक्त शीर्षक इस कथा का नहीं हो सकता था।
लेखक की वर्णनशैली मन को रमाती है और सभी आयुवर्ग हेतु मनोरंजक है। यह कहने में अब कोई शंका नहीं कि कथा कहने की कला में तृषार पारंगत हो चुके हैं।
एक रहस्यमयी कथा कहते-कहते अचानक तृषार आपको अपने पसंदीदा विषय “मंदिर” की और ले जाते हैं।
आपको लगता है कि आप यात्रा वृत्तांत पढ़ने वाले हैं किन्तु तृषार आपको चौंकाते हुए आपको एक नये विषय की और ले जाते हैं।
आपको ऐसा लगने लगता है कि यह भूत-प्रेत बाधा से सम्बंधित कथा है जिसको अंत में तृषार आपके मन का वहम साबित का देने वाले हैं। तभी आपके समक्ष एक नवयुवती के रूप में नया पात्र ले आते हैं।
आज के नए लेखकों की कथाओं में भाग्य की अपेक्षा पुरुषार्थ पर अधिक बल दिया गया है। मनुष्य जब से यह जानने लगा है कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माण करता है तथा वह किसी के हाथ का खिलौना नहीं, तब से कथाओं का आधार जीवन का संघर्ष बनने लगा है।
किन्तु तृषार आपके सामने आज के ज्वलंत विषय “मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा भारत की संस्कृति और सभ्यता पर आक्रमण” को लेकर एक अद्भुत रचना प्रस्तुत करते हैं।
रहस्य-रोमांच पैदा करता हुआ कथानक ऐसा है कि आपको प्रतीत होगा कि आप नायक के साथ ही चल रहे हैं। अंत में रहस्योद्घघाटन पर चकित हो जाते हैं कि कैसे अतीत की घनी परछाइयाँ वर्तमान में भी आप अधिकार करने के लिये आतुर हैं।
यूँ तो प्रत्येक कथा-लेखक अपने ढंग से कथा कहकर उसमें एक विशेषता पैदा कर देता है किन्तु यहाँ तृषार अपनी कल्पनाशक्ति से कथा के कथानक, पात्र या वातावरण को अत्यंत प्रभावशाली बना देते हैं।
लेखक की भाषा-शैली के सभी पाठक पहले से ही प्रशंसक हैं तथा इस कथा में भी भी उन्होंने हम सभी को निराश नहीं किया है। आशा है कि उनकी आने वाली रचनाये थोड़ी बड़ी होंगी जिससे हमको उन कथाओं का सौन्दर्य लेने का अधिक आनंद प्राप्त हो।
लेखक तृषार पिछले अनेक वर्षों से पौराणिक और ऐतिहासिक कथा संदर्भों के पार्श्व में सामयिक और दैनिक जीवन की समस्याओं का समाधान ढूँढने की कोशिश करती कथाएं अनेक मीडिया मंचो पर लिखते आ रहे हैं। आप अक्सर उनके वृत्तांतों में उनकी अनवरत यात्राओं की झलकियाँ देख सकते हैं।
भारतीय मंदिर स्थापत्य और ललित कला से संबद्ध लेखन में उनकी गहरी रूचि हैं। उनकी शब्दावली में तत्सम शब्दों के अतिरिक्त, अंग्रेजी, हिंदवी, गुजराती तथा मराठी का पुट भी होता है। लेखक पेशे से एक फ्रीलांस आइटी कंसलटेंट और डेटाबेस आर्किटेक्ट हैं।
चालीस पृष्ठों की यह पुस्तक अमेज़न किंडल पर उपलब्ध है।