खुद ब्रह्मचर्य के मशहूर प्रयोग करने वाले गांधीजी खजुराहो की मैथुन मूर्तियों को देश की संस्कृति के लिए शर्म मानते थे और वो चाहते थे कि इन खूबसूरत प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया जाए और स्थापत्यों का विध्वंस कर दिया जाए लेकिन उस समय भी रबिंद्रनाथ टैगोर जैसे विचारवन्त पुरूषों के विरोध ने गांधी को सफल नहीं होने दिया, अंग्रेजों ने भी रबिंद्रनाथ का साथ दिया। शायद अंग्रेजों को हमारी विरासत का महत्व गांधीजी से अधिक पता था।
अर्वाचीन में जब से खजुराहो के स्थापत्य प्रकाश में आए हैं तब से इन मैथुन प्रतिमाओं के निर्माण का रहस्य ढूंढने के अनेक प्रयास किए गए हैं। मंदिरों में उत्कीर्ण लेखों में इनके विषय में कोई जानकारी नहीं होने की परिस्थिति में विभिन्न प्रकार की अवधारणाएं बांधीं गई हैं।
तत्कालीन समाज में गौतम बुद्ध के उपदेश युवाओं का मानस परिवर्तन कर रहे थे, उनके मन से संभोग के प्रति रूचि खत्म हो रही थी। ऐसी परिस्थिति में समाज का बिखराव तय था। यदि युवा भिक्खु बन संसार त्याग दें तो राष्ट्र पर विदेशी भय बढ़ जाता है। राज्य को चलाने के लिए सैन्य, मंत्री परिषद कुछ नहीं होगा और इस परिस्थिति में राष्ट्र विदेशी आक्रमणों का सामना करने में असमर्थ होगा। एक मान्यता के अनुसार युवाओं को विरक्ति पथ से गृहस्थ जीवन की ओर आकर्षित करने के लिये इन मंदिरो पर ऐसी मूर्तियां अंकित कराईं गईं। इन प्रतिमाओं का एक अर्थ ये भी है कि आप गृहस्थ जीवन में रहकर भी भगवद्भक्ति से मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
एक धारणा के अनुसार उस समय वाममार्गी तांत्रिक संप्रदाय भी चरम पर थे जो योग के साथ भोग का प्रयोग साधना के लिये आवश्यक समझते थे। वात्स्यायन ऋषि की रचना कामसूत्र में भी भोग जीवन दर्शन का एक भाग है।
एक ओर जहां इब्राहीमी पंथों में स्त्री को जमीन की तरह पुरुष की संपत्ति मात्र माना जाता है वहीं भारतीय सनातन सभ्यता में ऐसा नहीं है। हमारे प्राचीन मंदिरों में उकेरी गई लक्ष्मी, सरस्वती, महिषासुरमर्दिनी और सप्तमातृकाओं के उपरांत गंगा और यमुना जैसी नदियों का भी स्त्री स्वरुप में निरूपण इसी बात का प्रमाण है। हमारे देवताओं को भी हमेशा अपनी पत्नियों के साथ दिखाया जाता है। खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर में भी कामदेव के साथ रति का शिल्प बनाया गया है। रति ब्रह्मा-पुत्र दक्ष और प्रसूति की संतान हैं। कुछेक कथाओं में रति के उपरांत प्रीति को भी उनकी पत्नी के रूप में बताया जाता है।
कामदेव के एक हाथ में गन्ने का धनुष और दूसरे में पांच बाण दिखाए गए हैं, यह पांच बाण मनुष्य की पांच इंद्रियों के प्रतीक हैं जब मनुष्य कामवासना से ग्रस्त हो जाता है तब सबसे पहले इन इंद्रियों की विवेक बुद्धि का नाश होता है। इन पांच बाणों को धवल, रक्तवर्णी और नील कमल के उपरांत अशोक, केवड़ा, केतकी और आम के मोर जैसे पुष्पों से सजाया गया है।
इन मंदिरों और उनकी प्रतिमाओं का निर्माण शिल्प शास्त्र के मयमतम् जैसे ग्रंथों के अनुसार किया गया था। इन ग्रंथों में तालमान प्रमाण के अनुरूप प्रतिमाओं को बारीकी से उकेरा जाता था। सनातन धर्म में चार प्रकार के पुरुषार्थ कहे गए हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। खजुराहो स्थापत्यों में इन सभी पुरुषार्थों के विषय में शिल्प बनाए गए हैं लेकिन ज्यादातर प्रवासियों का उद्देश्य यहां की कामुक प्रतिज्ञाएं देखना ही होता है।
खजुराहो के मंदिरों में सिर्फ १०% मैथुन शिल्प पाए जाते हैं जिनमें से ज्यादातर बाहरी गलियारों में उकेरे गए हैं, मंदिरों के अंदरूनी भाग में नहीं! यहां स्पष्ट संदेश दिया गया है कि यदि आप सांसारिक भोगों की भूलभुलैया में खो गए हैं, तो आप सत्य के मंदिर के गर्भगृह में कैसे प्रवेश करेंगे?
चलिए नागर शैली में निर्मित पंचायतन पूजा पद्धति पर आधारित इन स्थापत्यों की हजारों प्रतिमाओं में छुपीं कुछ रहस्यमय कलाकृतियों का अवलोकन कर के उनके निर्माण के पीछे का उद्देश्य समझने का प्रयास करते हैं।
भारतीय मंदिरों में अप्सराओं को संगीत वाद्य बजाते हुए या नृत्य करते हुए देखा जा सकता है लेकिन यहां अप्सराएं कुछ रहस्यमय प्रवृत्तियों में रत हैं।
वानर का स्वभाव चंचलता का प्रतीक है और इस शिल्प में एक युगल वानर से भयभीत हो कर उसे दूर ढकेलने का का प्रयास करता प्रतीत होता है। यहां भी वानर प्रतीकात्मक रूप से मनुष्य मन का निरूपण करता है। मनुष्य मन की प्रकृति भी वानर की तरह चंचल होती है और ढेरों कामुक मूर्तियों के बीच यह शिल्प एक चेतावनी के रूप में घड़ा गया प्रतीत होता है।
वृश्चिक (बिच्छु) को प्रसव और प्रजनन का प्रतीक माना गया है। इस शिल्प में अप्सरा के शरीर के संवेदनशील अवयवों पर वृश्चिक को रेंगते हुए दिखाया गया है। वृश्चिक का विष अंत का कारण बन सकता है यह जानते हुए भी कामवासना से ग्रस्त नग्न अप्सरा के चेहरे पर संतुष्टि का भाव है।
इन दोनों रहस्यमयी शिल्पों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि यह मंदिरशिल्प आसक्ति से ज्यादा विरक्ति का भाव जगाने के लिए बनाए गए हैं। क्या सच में इन कामुक शिल्पकृतियों को समकालीन में जिस तरह से प्रस्तुत किया जाता है वह सही है या इनका कुछ और ही अर्थ है? देखते हैं खजुराहो रहस्य शृंखला की अगली कड़ी में…
हमेशा की तरह शानदार।।
शानदार लेख भईया
बहुत ने नरपुंजो को भेज देंगे जिससे वो अब सोच समझ कर मुंह खोले
बहुत शानदार व्याख्या है, गहरे से शिल्प में उतरते हुवे बहुत ही सटीक विवेचना हैं। रही बात गांधी की तो उससे बड़ा दोगला आदमी अभी तक पैदा नहीं हुआ। अंग्रेजो के दलाल को देश का उद्धारक हमीं लोग मैन सकते है।
Good interpretation… Statistical approach.only 10 % of all the statues are of compromising position and that also in the outside of the main temple complex.this system is found in south india also.the same type of images are found carved on the gopuram of the temple
Good Work , Trushar ! A good read indeed.
अद्भुत मैं अब तक गया नही लेकिन जब भी जाऊंगा आपका ये लेख ऒर इसकी बारीकी को वहाँ प्रयोग करने का प्रयास अवश्य करूँगा