पुस्तक समीक्षा : “समय अभी तक वहीं खड़ा है” ~ कल्पेश वाघ
ऐसे समय जब हिन्दी कविताओं का स्तर अपने न्यूनतम बिदुओ को छू रहा है, छन्दहीन कविता और रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कचरा परोसा जा रहा है, सूर…
प्राचीन से समकालीन तक…
ऐसे समय जब हिन्दी कविताओं का स्तर अपने न्यूनतम बिदुओ को छू रहा है, छन्दहीन कविता और रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कचरा परोसा जा रहा है, सूर…