बापू की उंगली थाम चली हिंदी की कलम।
गाँधी के विचार पारस थे जिसने भी उनके वचनों को गुना उसका हृदय स्वर्णाभा सा चमक उठा।
प्राचीन से समकालीन तक…
हिन्दी! जब हम निराशा के गर्त में गिरने को होते हैं, वहाँ से खींच लाती है
गाँधी के विचार पारस थे जिसने भी उनके वचनों को गुना उसका हृदय स्वर्णाभा सा चमक उठा।