पौराणिक कथा
मुद्गल पुराण में सिद्धिविनायक गणपति की कथा का विस्तार है। सृष्टि के आरंभ में सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी का उद्गम कमल के पुष्प से होता है। और इस कमल पुष्प को योगनिद्रा में सो रहे भगवान विष्णु अपनी नाभि में धारण करते हैं।
जब कमल पुष्प पर विराजे ब्रह्माजी ब्रह्मांड का निर्माण शुरू करते हैं, दो राक्षस मधु और कैटभ ब्रह्मा की सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया को बाधित करते हैं, जिससे विष्णु को जागने के लिए विवश होना पड़ता है।
विष्णु और मधु-कैटभ में भीषण युद्ध होता है, लेकिन अनेक यत्नों के बाद भी भगवान विष्णु उन्हें हरा नहीं पाते। वह भगवान शिव से इसका निराकरण पूछते हैं। भगवान शिव विष्णु को बताते हैं कि वह सफल नहीं हो रहे हैं क्योंकि वह युद्ध की शुरुआत में विघ्नहर्ता गणेश का आह्वान करना भूल गए थे।
विष्णु जी को अपनी भूल का ज्ञान होता है और वह महाराष्ट्र के सिद्धटेक क्षेत्र में “ॐ श्री गणेशाय नमः” महामंत्र का जाप करते हुए तपस्या करते हैं। विष्णु की तपस्या से प्प्रसन्न हो कर, गणपति जी उन्हें विभिन्न सिद्धियाँ प्रदान करते हैं। विष्णु भगवान लड़ाई फिर से युद्ध का आरंभ करते हैं और दोनों राक्षसों का वध करते हैं। वह स्थान जहाँ विष्णु को गणेश जी ने सिद्धियाँ प्रदान की, सिद्धटेक के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
पुराण: मुद्गल पुराण
स्थापत्य और भौगोलिक स्थान
भौगोलिक रूप से यह गणेश मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में करजत तालुके में भीमा नदी के तट पर स्थित है। काले पत्थर से बने उत्तराभिमुख सिद्धिविनायक गणपति के आज के मंदिर का श्रेय इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर को जाता है। भारतभर में अनेक मंदिरों का जिर्णोद्धार कराने वाली महारानी ने सिद्धटेक के मंदिर का भी निर्माण कराया था।
मंदिर के प्रवेशद्वार पर स्थित नगारखाने का निर्माण पेशवा काल में सरदार हरिपंत फडके ने कराया था। इन दिनों मंदिर का व्यवस्थापन और संचालन चिंचवड के देवस्थान ट्रस्ट के हस्तक है।
सभामंडप से होते हुए गर्भगृह के द्वार पर द्वारपाल के रूप में जय और विजय की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गई हैं। गणेश मंदिर के रूप में प्रसिद्ध होने के बावजूद इस मंदिर की रचना शिव पंचायतन के अनुरूप है जिसमें भगवान शिव केंद्र में हैं और देवी, गणेश, विष्णु तथा सूर्य उनके चारों दिशाओं में स्थित हैं।
अन्य सभी अष्टविनायक क्षेत्रों की भांति इस मंदिर के गणपति विग्रह को भी स्वयंभू माना जाता है। यह दाहिनी सूंड के गणपति की मूर्ति अपनेआप में विशिष्ट है।