फरवरी १८, १९४६। कमांडर इन चीफ ऑचिनलेक के कार्यक्रम की पूर्व रात्रि के अंधकार में बलाई चन्द्र दत्त ने गोदी में प्रवेश किया और मंच पर, दीवारों पर और जहाजों पर बड़े अक्षरों में स्वतंत्रता के नारे लिखे।

गोदी से बाहर निकल रहे बलाई चन्द्र को आपत्तिजनक पोस्टर्स और पेइंट के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। क्रांति की ज्वाला से धधकते बलाई ने आर्थर किंग को ललकारते हुए कहा “…Save your breath, I am ready to face your firing squad”.

बलाई चन्द्र की गिरफ्तारी के समाचार जंगल की आग की गति से फैल गए। मुंबई नौका थाने में क्लॉड़ ऑचिनलेक के पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम से पहले ही भारतीय सिपाही गोदी से बाहर निकल आए और ब्रिटिश सरकार के विरोध में सूत्रोच्चार करते हुए मुंबई के राजमार्गों पर कूच कर दिए।

आश्चर्यजनक रूप से मुंबई के प्रजाजनों ने भी नौसैनिकों के आंदोलन को समर्थन दिया। नौसैनिक और मुंबई की जनता एकजुट होकर राजमार्गों पर मार्च कर रहे थे। भयभीत अंग्रेजी सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दिल्ली मदद का संदेश भेजा।

एक ओर मुंबई की सड़कों पर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध नारेबाजी हो रही थी तो दूसरी ओर दिल्ली में नेताओं द्वारा सत्ता के दांव-पेंच खेले जा रहे थे।

इस पड़ाव तक यह आंदोलन अधिकांश रूप में शांतिपूर्ण रहा था किन्तु एडमिरल गोडफ्रे ने विप्लवकारी नौसैनिकों को रेडियो संदेश में धमकी देने के बाद मामला हाथ से निकल गया।

अब तक मुंबई में आग पकड़ रहा विद्रोह मद्रास, कोच्चि, कराची, कलकत्ता और विशाखापट्टनम जैसे बंदरगाहों में भी फैल गया। सिपाही से अधिकारी तक सभी भारतीय क्रोधाग्नि से भरे हुए थे।

रॉयल इण्डियन नेवी के मुंबई दस्ते के नर्मदा, जमुना, शमशीर, कुमाऊं और किस्तना जैसे साठ से अधिक जहाजों ने अपनी तोपें गेट वे ऑफ इण्डिया की ओर घुमाईं। सब-लेफ्टिनेंट रुस्तम गांधी अंग्रेजी सत्ता के दमन के प्रतीक समान बॉम्बे यॉट-क्लब पर बमबारी कर उसे नेस्तनाबूद करने की चाहत रखते थे लेकिन कैप्टन एन कृष्णन ने इसके लिए अनुमति नहीं दी।


J164 – The HMIS Kumaon. Credit: Wikimedia Commons

मुंबई की कपड़ा उद्योग में काम करने वाले भारतीय सड़कों पर उतर आए। पुलिस की गोलियों से पच्चीस से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी। सड़कों पर दिखने वाले ब्रिटिश अधिकारी और प्रवासियों को भी निशाना बनाया गया।

दूसरी ओर ब्रिटिश नौसेना (RIN) के फ्रिगेट हिन्दुस्तान ने कराची बंदरगाह पर गोलाबारी शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में ब्रिटिश बमबारी से फ्रिगेट के दर्जन-भर नाविकों ने शहादत दी।

यहां उल्लेखनीय बात यह भी है कि अंग्रेजों के अब तक निष्ठावान रहे गोरखा और बलोच सिपाहियों ने भी अपने विप्लवकारी देशबांधवों पर वार करने से इनकार कर दिया।

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध समेत अनेक युद्धों में ब्रिटिश ताज के लिए बलिदान देने वाले निष्ठावान सिपाहियों का सत्ता के विरुद्ध विद्रोह कर देना विदेशी सत्ता के ताबूत की आखिरी कील साबित हुआ।

***

फरवरी, २०, १९४६। कलकत्ता, कराची, मद्रास, जामनगर, विशाखापट्टनम, कोच्चि और मुंबई के विद्रोही सिपाहियों ने भारत के सभी तटवर्ती क्षेत्रों को घेर लिया था। जब नौसैनिक गेट-वे ऑफ इण्डिया से मार्च करते हुए मुंबई के राजमार्गों पर निकले तब जनता ने फलों और मिठाइयों से उनका स्वागत किया।

इस विप्लव में RIN के चार जत्थों के अस्सी जहाजों ने भाग लिया। बीस नौकामथक और बीस हजार नौसैनिकों ने योगदान दिया। इस विद्रोह ने अडतालीस घंटों में ही ब्रिटिश साम्राज्य को बिना भारतीयों के समर्थन उनका क्या सामर्थ्य था यह दिखा दिया।

जैसे कि अपेक्षित था गांधीजी ने इस विद्रोह की कड़े शब्दों में निंदा की। गांधीजी के अनुसार यह अपवित्र आंदोलन था उन्होंने कहा इस आंदोलन ने ग़लत उदाहरण प्रस्तुत किया और विश्व के सामने भारत की छवि खराब की। उनके विचारों से सत्याग्रह से इतर कोई भी आंदोलन से भारत को स्वतंत्रता मिलना गलत था।

यहां उल्लेखनीय यह भी है कि कांग्रेस से अरुणा आसफ अली जैसे नेताओं ने तथा ‘आश्चर्यजनक रूप से’ राष्ट्रवादी आंदोलनों से दूर रहने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने भी नौसैनिकों का समर्थन किया।

अंग्रेज और भारतीय नौसेनिकों के वेतन और भोजन में किए जाने वाले भेदभाव से शुरू हुआ आंदोलन नागरिकों का समर्थन प्राप्त होते ही स्फुरित स्वतंत्रता आंदोलन में परिवर्तित हो गया।

इस आंदोलन की सफलता कांग्रेस तथा अन्य राजनीतिक दलों की आंखों में कांटे की तरह चुभ रही थी। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। तथाकथित बड़े नेताओं ने इस विद्रोह की निंदा की और कुछ नेताओं ने नौसैनिकों से मुलाकात कर आंदोलन वापस लेने का सुझाव दिया।

नागरिकों का पूरा समर्थन होने के बावजूद नौसेना के विद्रोहियों को यह आंदोलन वापस लेने पर विवश होना पड़ा। यह दुर्भाग्यपूर्ण था लेकिन इस विद्रोह का अनुनाद ब्रिटिश संसद और सरकारी भवनों में भी गूंजने लगा। अंग्रेज भयभीत हो उठे थे। वह समझ चुके थे, यदि इतने कम समय में नौसेना का विद्रोह उनकी सत्ता की नींव हिला सकता है तो आर्मी और एयरफोर्स के साथ किया गया सुनियोजित विद्रोह उनके पतन का कारण भी बन सकता है।

वीर सावरकर जैसे दूरद्रष्टा महापुरुषों ने वर्षों पूर्व ही आर्मी, एयरफोर्स और नौसेना में भारतीय युवकों को शामिल होने का आह्वान किया था‌। उनका स्पष्ट मत था कि शस्त्र संचालन और शारीरिक सौष्ठव जैसी तालीम प्राप्त होने के पश्चात सक्षम युवा ब्रिटिश राज का पतन करने में सफल हो जाएंगे।

भारतीय महाद्वीप में ब्रिटिश सत्ता का सूर्य अस्त होना तय था। अंततः अंग्रेजों ने देश छोड़ा। और फिर वह स्वर्ण अवसर भी आया जब मुंबई के गेट वे ऑफ इण्डिया बंदरगाह से उनका अंतिम जहाज भारतीय तटों से विदा हुआ।

आने वाली पीढ़ी को इस महान विद्रोह से अनभिज्ञ रखने के हर संभव प्रयास तत्कालीन सरकार द्वारा किए गए। स्वतंत्रता प्राप्त कर चुके भारत में फिल्म और रंगमंच के माध्यम से इस विद्रोह की कथा बयान करने वाले कलाकारों और अभिनेताओं को येन-केन प्रकारेण प्रताड़ित किया गया‌।

विद्रोह की चिंगारी लगाने वाले बलाई चन्द्र दत्त को भूला दिया गया। पाठ्यक्रम और इतिहास की पुस्तकों से नौसैनिकों के इन कारनामों को गायब कर दिया गया। बलाई चन्द्र ने पत्रकारिता और लेखन के माध्यम से इस विद्रोह को जन-मानस में जीवित रखने का प्रयास किया।

नौसेना ने इस स्वतन्त्रता संग्राम को अपनी गौरवगाथा में स्थान दिया। कोलाबा में स्मारक उद्यान के रूप में इस विद्रोह की स्मृतियों को जीवंत रखा गया है। नौसेना के एक जहाज़ का नाम बी सी दत्त के नाम पर रख कर उनके योगदान को सम्मानित किया गया। विद्रोही सिपाहियों में सभी धर्म संप्रदायों के नौसैनिक सम्मिलित थे।

विद्रोह समाप्त होने तक पुलिस की गोलियों से ~६३ नागरिकों की मौत हो चुकी थी।

RIN Uprising memorial Colaba, Mumbai

सन सत्तावन से शुरू हुआ संघर्ष एक लंबी यात्रा में अनेक पड़ाव पार करते हुए अपने गंतव्य तक पहुंचा। द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर का पराजित होना, दो बड़े परमाणु हमलों के बाद जापान का आत्मसमर्पण, आईएनए के पराक्रम, सुभाष बाबू की संदिग्ध मौत और नौसेना का विद्रोह… इस संपूर्ण घटनाक्रम ने अनेकों संयोगों के आश्चर्यजनक परिणामों को जन्म दिया।

भारतीय महाद्वीप के सभी देशों को एक के बाद एक मुक्त कर दिया गया। किसी और देश में यह विद्रोह पाठ्यक्रम का भाग होता लेकिन दुर्भाग्यवश इस राष्ट्र ने अपने नायकों का सम्मान करना नहीं सीखा।

Ref:

  1. Mutiny of the innocents By B C Dutt
  2. Safari Magazine (Gujarati Monthly)
  3. https://indianexpress.com/article/explained/rin-upsurge-when-indian-naval-sailors-rose-in-revolt-against-the-raj-6274531/
  4. https://swarajyamag.com/columns/the-forgotten-naval-mutiny-of-1946-and-indias-independence
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