सोशल मीडिया पर जिज्ञासावश पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न इतने रोचक होते हैं कि जिनके उत्तर में मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक जानकारियों का पिटारा खुल जाता है ऐसा ही एक प्रश्न मुझसे कुछ समय पहले मित्र आशीष भाई ने पूछा था। “अधिकतर भगवान के चित्र में उन्हें एक पैर पर जोर देकर खड़े होते बताया है। इसका क्या कारण है?”
प्रतिमा विज्ञान में इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। आशीष भाई जिस अंग-विन्यास के बारे में जिज्ञासा व्यक्त कर रहे हैं उसे ‘अभंग मुद्रा’ कहते हैं। इसमें शरीर का कमर का हिस्सा थोड़ा सा बल खाया हुआ होने की वजह से एक पैर आगे की ओर बढ़ा होता है। हिंदू मंदिरों में गर्भगृह में स्थापित मुख्य विग्रहों का अंग-विन्यास अभंग होता है।
‘त्रिभंग मुद्रा’ में शरीर के तीन हिस्से बल खाते हैं। गर्दन, कमर और घुटनों को इतने आकर्षक तरीके से मोड़ा जाता है कि प्रतिमा की भाव-भंगिमा में एक उर्जा का आभास होता है। अप्सराओं, सुरा-सुंदरी एवं नागकन्याओं के शिल्प अक्सर त्रिभंग मुद्रा में बनाए जाते हैं।
नटराज शिव और अन्य नृत्यरत प्रतिमाओं में पात्रों के गर्दन, कोहनी, कमर, कलाई और घुटनों जैसे विविध भागों को विविध प्रकार से मुडा हुआ दिखाया जाता है इसलिए इसे ‘अतिभंग विन्यास’ कहते हैं। शिव की संहारमूर्तियों तथा महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमाओं को भी अतिभंग विन्यास में उत्कीर्ण किया जाता है।
‘समभंग विन्यास’ में पात्र आसनस्थ या खड़े हुए दोनों ओर से समतुलन बनाए रखता है। यह प्रतिमाएं ज्यादा आकर्षक नहीं लगतीं। सामान्य रूप से ब्रह्माजी & ऋषि मुनियों की प्रतिमाएं समभंग मुद्रा में उकेरी जाती हैं।
इन मुद्राओं तथा विन्यासों का अभ्यास शिल्प कला के उपरांत भरतनाट्यम जैसी नृत्य कलाओं में भी किया जाता है।
बहुत उत्तम और ध्यान देने योग्य जानकारी साझा करी है आपने।