होलिका दहन को अभी चार दिन शेष थे किंतु फागुन की फागुआहट ने सबको सराबोर कर लिया था। काशी तो कुछ ज्यादा ही उत्सवी लहक में थी और होती भी क्यों न अभी कल ही तो काशीनाथ भगवान शंकर मईया गौरा का गौना कराने के पश्चात् पहली बार काशी लौटे है तो उनके स्वागत में काशी को तो खिल ही जाना था।
काशीपति की अगवानी में सभी देव मनुज रूप धर काशी में उपस्थित हुए थे। चार दिन बाद होली थी लेकिन काशीनाथ के स्वागत में सबने उसी दिन होली मनाना शुरू कर दिया।
भक्ति में रंगे भक्तो ने काशी को रंगो से सराबोर कर दिया। खूब रंग गुलाल से महादेव का स्वागत किया गया। भला महादेव भी कैसे अपने भक्तो पर न रीझते सो उन्होंने भी सबके साथ मिलकर खूब गुलाल उड़ाया और होली खेली।
काशी की गलियों में अबीर गुलाल की खुशबू वाली बयार बह उठी और मिट्टी के कण कण में रंगो की रंगत उतर आई। दिनभर उल्लास और नाच गाने के बाद सबने जब गंगा में उतर अपने रंग छुड़ाए तो गंगा के पानी ने भी अपना रंग बदल दिया था।
मईया गौरा भी अपने ऐसे अलौकिक स्वागत से प्रफुल्लित थी। लेकिन कल दिनभर के उत्सव के बावजूद आज महादेव को कुछ रिक्तता अनुभव हो रही थी।
देव, देवगुरु, देवऋषि, दनुज, दैत्य सब तो थे कल के उत्सव में फिर यह रिक्तता कैसी ? अचानक महादेव के मन में विचार कौंधा। उनके प्रिय भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शंखिनी तो कल के उत्सव में थे ही नहीं। भूतभावन भोले नाथ का उत्सव भला इनके बिना पूरा हो भी सकता था ? महादेव ने तत्क्षण महाशमसान की ओर प्रस्थान किया।
मनुजो के लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाले मणिकर्णिका घाट में रोज की तरह धूंँ धूंँ करके चिताएंँ जल रही थी। चिता से उठने वाला धुआंँ आसमान को ढक ले रहा था।
कल हुए उत्सव के बाद से शमशानवासियों को बस इस बात का दुःख था कि भोलेनाथ ने उनके बिना उत्सव मना लिया। क्या वो भूल गए कि उनकी शादी में जब कोई देवता दूल्हे का श्रृंगार करने नही आया था तो हम गणों ने ही उनका कितना सुंदर श्रृंगार किया था।
मसान की शांति मे इन गणों की शिथिलता और मुर्दनी भर रही थी। तभी गणों ने देखा कि महादेव मणिकर्णिका की सीढ़ियां उतर रहे है। भूतनाथ को आते देख सभी गण उनके निकट आ गए। हर हर महादेव की गूंँज से सबके भूतनाथ का स्वागत किया लेकिन किसी भूत, प्रेत, पिशाच ने भोलेनाथ से अपनी व्यथा व्यक्त नही की। गणों के भयानक किंतु शांत मुख देख भोलेनाथ समझ गए कि उनके प्रिय गण किस बात को लेकर मन ही मन दु:खी हैं।
गणों के ह्रदय की बात को भांपते हुए भूतभावन स्वयं ही बोल पड़े, “तुम्हारे बिना भला मैं कोई उत्सव मना सकता हूंँ। भूतों के बिना भूतनाथ पूर्ण नही है। चलो आज यही होली खेलते है।”
गणों को तो मानो उनकी व्याधि की औषधि मिल गई। बस यही तो चाहते थे सब। “लेकिन बाबा हम इस शमशान में रंग गुलाल कहांँ से लाएंगे?” एक छोटे गण ने अपनी अधीरता व्यक्त की।
भोलेनाथ ने छोटे गण के मुखहीन मुंड पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए बोले, “यह चिताएंँ राम नाम जप के साथ यहांँ आई आई है इसलिए इन जलती चिताओं की भस्म मेरे लिए प्रभु श्री राम के चरणों की पगधूल है। भला प्रभु की चरणरज से बढ़कर मेरे धारण करने के लिए और क्या हो सकता है ? इसी चिता भस्म मे हम होली खेलेंगे।”
भूतों ने जोर से हर हर महादेव की हंँकार लगाई तो पूरे शमशान में जल रही चिताओं के आसपास पिशाच, प्रेत, साँप, बिच्छूं, चांडाल सबका जमघट लग गया और वें सब हर हर बम बम का उच्चार करने लगे।
महादेव ने अपना दिगंबर रूप धारण किया और जोर जोर से डमरू बजाने लगे। डमरू की धुन पर सभी गणों ने नाचना शुरू कर दिया। पास जल रही चिताओं से भस्म अपने दोनो हाथो में भरकर गण हवा में उड़ाने लगे। सब गणों ने मिलकर सबसे पहले महादेव का भस्म और भभूत से अभिषेक किया फिर नाचते हुए गर्म चिताभस्म से एक दूसरे को पोतने लगे।
सर्पों ने अपने विषदंत कि पिचकारी बना एक दूसरे पर गरल की वर्षा करनी प्रारंभ कर दी। पिशाचों ने अधजली चिता के नरमुंडो को निकाला और उसमे चिता भस्म को भर लिया। अवधूत के भक्त गाते नाचते महादेव के डमरू की ताल पर रौद्र नृत्य करते हुए उत्सव मनाने लगे।
महादेव भी अपनी जटा खोल गणों से साथ झूमने लगे। चौसठ योगिनी खप्पर लेकर डमरू की धुन पर नाचने गाने लगी। भूतों के हुल्लड़ और चिता की राख ने महाशमशान ने को ढक लिया। जल रही चिताओं की लपटे आसमान को छूने लगी। हर हर बम बम का महोच्चार त्रैलोक्य में व्याप्त हो गया।
दिगंबर महादेव ने अपने सभी गणों के साथ खूब भस्म होली खेली। भूत, प्रेत, पिशाच, नंदी, भृंगी, श्रृंगी सब चिताभस्म की होली में रंग गए। गौरवर्णी भोलेनाथ को सफेद और काली भभूत के अभिषेक में देखने के लिए देवताओं की भीड़ एकत्रित हो गई।देवता, गंधर्व, किन्नर आदि को यह दृश्य देखकर भूतों और प्रेतो के सौभाग्य से ईर्ष्या हो रही थी। होनी भी चाहिए आखिर भगवान भूतभावन को भला अपने भूतों से ज्यादा और कोई प्रिय हो भी तो नही सकता है। दिगंबर = दिक् + अम्बर
दिगंबर = दिक् + अम्बर
दिशाएँ/आकाश ही जिनके वस्त्र हैं!
मसाने में होली के बाद महादेव सभी भूत, प्रेत, पिशाचो को वापस अपने अपने स्थान पर भेजते हुए बोले कि अब से प्रत्येक वर्ष रंगएकादशी के एक दिन बाद वह दिगंबर रूप के महाशमशान में चिताभस्म से होरी खेलने जरूर आयेंगे।
सभी गणों ने ‘हर हर महादेव’ का जयकारा लगाया और वापस अपने अपने स्थान पर लौट गए। उस दिन से आज तक बनारस में हर वर्ष मसाने की भस्म होली की परंपरा है और भगवान भूतभावन प्रत्येक वर्ष भूतों संग होली खेलने बनारस अवश्य आते है।
हर वर्ष काशीनाथ के गण चिताभस्म में और काशी भक्ति की होली में सराबोर होती है।
* तस्वीरें प्रतीकात्मक है।